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+ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक क्रांपनी
गच्छइ २ सा सयं संयणिजसि निसियाति ॥ २९ । ततणं तीसे देवताए देवीए अयं अज्झत्थिए ४ समुप्पणे-एवं खलु अहं सरीस्सए जाव णलकुवरसमाणा सत्त पुत्ते पथाती नो चेवणं मए एगस्सवि बालत्तणए सुमुन्भते, एसवियणं कण्हेवासुदेवो छण्हं २ मासाणं मम अतियं पाय वादत्त हव्वमागच्छइ ॥ २० ॥ ते धणाओणं ताओ अम्मयाओ ४ जासिमाणे णियगकुत्थिसंभूयाई थणधलुगाई माहुरसमुला वयाई मम्मणयजं विपयाति, थणमूलकक्खदेसभागं अंतिसरमाणाति, मुद्वयाति
पुणांय कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं गिण्हेति २ सा,उछांगनिवेसयाई, दितिसमूलावते उतरकर जहां सायं का घर जहां स्वयं की शैय्या तहां आई, आकर शैय्या में बैठी ॥ २९ ॥ सब उस देवकी देवी को इस प्रकार का अध्यवसाय यावत् उत्पन्न हुवा. यों निश्चय मैंने एक सरीखे यावत् नलकुमार समान सात पुत्र प्रस्रवे परंतु निश्चय मैंने एक भी बालक को छोटेग्ने में प्राप्त नहीं किया, यह एक कृष्ण वासुदेव भी छे २ महीने में मेरे पास पांव वंदना करने को शीघ्र आता है ॥ ३० ॥ इसलिये धन्य है. उस माता को वही कृतपुणी सुलक्षणी है, जो इस प्रकार अपनी कूक्षी से उत्पन्न हुवे बालक को स्तन पान कराती है-दूध पिलाती है, मधुर मिष्ट वचन बोलाती है. तोतली बोली से बोलाती है, वाहकाक्षी के देशविभाग में स्तन से दवाती है, पुनः कोपल कर तल इस्त्र में ग्रहण करती है, हाथ पकड के गोद में
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी
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