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________________ 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी जावपञ्चक्खंदेव लोकभूताए समणाणिग्गंधाणं उच्चनीयं जाव अडमाणा भत्तपाणं नोलभत्ति, तओणं ताइचेवकुलाई भत्तपाणा भुजो२अणुपविसति? ॥१०॥ततेणं ते अणगारा देवइदेवीए एवं वायासी-नो खलु देवाणुप्पिया!कण्हवासुदेवस्स इभीसे बारवतिए णयरीए जाव देवलोगभूतोए समणाणं णिग्गंथाणं उच्चणीय जाव अडमाणा भत्तपाणे नो लब्भइ ।नो चेत्र णंताई चेवकुलाइंदोचंदि तचंपि भत्तपाणीए अणुपविसंति॥११॥ एवं खलु देवाणुप्पिया! अहं भदिलपुर नयरे णागस्स गाहावइस्सपुत्ता सुलसाएभारियाएअत्तया, छभायरो सही. तीसरी वक्त मेरे यहां पधारे इस का क्या कारन. तद्यपी दानान्तर निवृति केलिये उन को पूर्वोक्त प्रकार मेही वंदना नमस्कारकर कर थालभर केशरियों मोदक प्रतिलाभे प्रतिलाभकर हाथजोडकर यों कहने लगी क्या अहो देवानुप्रिया! कृष्णासुदेव की द्वारका नगरी वारा योजर लम्पी नवयोजा चौडी यावत् प्रत्यक्ष देवलोक जैसी इस में श्रमण निर्ग्रन्थ को ऊंच नीच मध्यय कुनों में परिभ्रमण करते आहार पानी की पानी नहीं होती है क्यों कि जिम के लिये सधु को उस [प्रथम प्रवेश किये] घर में बारम्बार प्रवेश करना पड़े ? ॥१०॥ तब वे अनगार देवकी देवीका उक्त कथन श्रवणकर मतलब समझे और कहने लगे कि हे देवाणुप्पिया ! कृष्णासुदेव की द्वारका नगरी बारा योजन की लम्बी यावत् प्रत्यक्ष देवलोक जैसी इस में श्रमण निर्ग्रन्थ को परिभ्रमण करते आहार पानी नहीं मिले, प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी in Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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