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________________ 48 अष्टमांग अंतगड दशांग सूत्र+488+ दरा सरिस्सया जाव नलकूवर समाणा, अरहओ अरिट्रनेमीस्स अंतिए धम्मं सोचा निसमं संसार भउविग्गा भीयाजम्मणमरणाणं मुंडे जाव पवइत्ता ॥१२॥ ततेणं अम्हं जं चेवदिवसं पवइए तंचेवदिसं अरहा अरिट्ठनेमी वंदामो णमंसामो इमएतारूवं अभिग्गहं उगिण्हामो-इच्छामोणं भंते ! तुब्भेहि अन्भणुणाया समाणा जाव अहा... सह॥१३॥ततेणं अम्हे अरहंत अब्भणुणायसमाणे जाव जीवाए छटुंछट्टेणं जाव विह.. रामो ॥ तं अज छ? खमग पारणयंसी पढमाएपोरिसीए सज्झायं जाव अडमाणे तवगिहं. ऐमा नहीं है. और हमने प्रथम प्रवेश किये हुवे घर में दो तीन वक्त आहार पानी के लिये प्रवेश भी किया नहीं है ॥ ११ ॥ परंतु यो निश्चय है. हे देवानुप्रिय ! हम भद्दिल पुर नगर के रहवासी नाग नामक गाथापति के पुत्र, सुलसा भारिया के आत्मज छ भाइ एक उदर के. उत्पन्न हुवे यावत् नल कुबेर समान अरिहंत अरिष्ट नमीजी के पास धर्म श्रवण कर अवधार कर संसार से उद्वेग पाये जन्ममृत्यु के में डर मे डरकर मुण्डित हुवे यावत् दीक्षा ली ॥ १२॥ तब हमने जिम दिन दीक्षा धारन की उस ही दिन अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथजी को वंदना नमस्कार कर इस प्रकार अभिग्रह धारन किया-हे भगवन् ! हम * चाहाते हैं. जो आपकी आज्ञा हो तो जावजीव पर्या बेले २ तप निरन्तर करना, तब भगवंतने कहा यथामुख करो ॥ १३ ॥ तब से इम भगवन्त की आज्ञा प्राप्त कर बले २ पारना करते हुवे विचरने । तृतीय वर्गका अष्टम अध्ययन * Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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