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वंदति नमसइ २त्ता जेणेव भत्तगघरए तेणेव उवागच्छइ रत्ता सीहकिसरणं मोदगाणं थालंभरेइ २त्ता तेअणगारे पडिलामति २त्ता वंदति नमसति २त्ता पविसज्जेति ॥८॥ तदाणं तरचणं दोच्चे संघडए बारवत्तिए नगरीए उच्च जाव पडिविसंजेत्ति॥९॥ तदाणं तरंचणं तच्चेसंघाडे बारवतिनगरीए उच्चनीय जाव पडिल भत्ति २ त्ता एवं वयासी. किण्हं देवाणुप्पिया!किप्हवासुदेवस्स इमीसे वारवतीए नयरीए बारस्स जोयण आयामें
अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र
जाकर तीन वक्त घुटने जमीन को लगाकर हाथ जोड प्रदक्षिणावर्त फिराकर वंदना नपस्कार की, वंदना नमस्कार करके जहां भोजन गृहथा तहां आई, आकर सिंहकेमरी मोदक (ला) याल, भरी, थाल भरकर
उन अनगार को प्रतिला-बेहराये, फिर बंदन नमस्कार कर पहोंचाय ॥ ८॥ उा के गये बाद थोडी ही कदिर के अन्तर से इन में का दूसरा दो सा का संघाड़ा द्वारका नगरी में फिरता हुश, वह भी वासुत्रजी
की देवकी रानी के घर में आय, उन को आते देख देवकी विसमयपाई कि यह साधु वही हैं की अन्य ? उन को भी पूर्वोक्त प्रकार बंदना नमस्कार कर सिंहकेशरी मादक प्रतिलाभ का पहोंचाये ॥ ९ ॥ उन
के गयेबाद उन्ही में का तीसरा दो साधु का संघाडा भी द्वारका नगरी में भीक्षार्थ परिभ्रमण करता | वासुदेवजी की रानी देवकी के घर में आया, उन को देख देवकी आश्चार्य पाई. यह दोनों साधु
ततीय-वर्गका अष्टम अध्ययन 468.7
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