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________________ णयरिए, जहा पढमो जाव अरहा अरिटणेमी समोसढे ॥१॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहतोअरिट्ठनेमीस्स अंतेवासी छप्पिअणगारा भायरा सहोदराहोत्था, सरिस्सयासरित्तया, सरिन्वया, नीलुप्पल गवलगुलीय अयसिकुसुमणगासा, सिरिवछंकित्तवत्था, कुसुम कुंडला भद्दलया, नलकुमरंसमाणा ॥ २ ॥ ततेणं छ अणगारा जंधेव दिवसं मुण्डभवित्ता आगारातो अणगारियं पवइया, तंचेव दिवसं अरहं अरिटूनर्मि वंदति नमसति, वंदिता नमंसित्ता ए वयासी-इच्छामीणं भंते ! तुब्भेहि अभणु णायासमाणा जान जीवाए छटु छटेणं अणिखिलेणं तयो कम्मेणं संजमेणं तवसा यावत् अरिहंत अरिष्ट नेपीनाथजी पधारे वहां तक कहदेना ॥१॥ उस काल उस समय में अरिहत} 2 अरिष्ट नेमीनाथजी के शिष्य समीप्य रहनेवाले छ अनगार साधु सगे भ्रात, एक ही उदर मे उत्पर दिखने में एक से, शरीर की त्वचा, [ चपडी ] का रंग एकसा, सरीखी वय के धारक (देखाते हैं, 1.स्पल कमल भेगकाशंग गुली का रंग भलमी के फूल जैसा प्रकाशवान् शरीर के धारक, श्रीवच्छ स्वस्तिक अंकित हृदय के धारक, फूल के पुट पांखडी के जाना मकोमल अंग के धारक, नल कुवेर-धनदत्त देव समान देखाते थे ॥ २॥ छेही भनगार जिस दिन मुण्डित हवे थे. उस दिन अरिहंत अरिष्ठ नेमीनाथ 17को बंदना नमस्कार की, चंदना नमस्कार करके यों कहने लगे, अहो भगवन् ! हम चहाते हैं, जो 41 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदव सहायजी वालाप्रसादजी. रिश ने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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