SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 488 ++8 अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र हियरिउ, देवसेणे, सतुसेण. छे अज्झयणा एगगमो ॥ बत्तिसंतो दत्तो ॥वीसं वासाइ परियायतो, चउहस्स पुवाई भत्तुजेसिहा ॥ छ? मज्झयणा सस्मत्ता ॥ ३ ॥६॥ तेणं कालणं तेणं समएणं वारावतिए णयरिए जहा पदुमं, णवरं वसुदेव धारिणीदेवी, सीहसुमिणे, मारणे कुमारे, पणःसंतादातो, चउदरसपुव्वा, वीसवासा परियायतो॥ सेसं जहा गोतमस्स, जाव सेतुजेसिद्धे ॥ सत्तमज्झयणं सम्मत्तं ॥ ३ ॥ ७ ॥ * जत्ति उक्खेवो अट्ठमस्स-एवं खलु जंब ! तणं कालेगं तेणं समएणं बारावतिए नाग गाथापति पिता, मुलमा माता, बत्तीस २ स्त्रयों, बत्तीम २ दानका दायचा, बीस वर्षकी दिक्षा यावत् है शत्रुजय पर सिद्ध बुद्ध हो मुक्ति गय ।। इनि तीसरे वर्ग का छठा अध्याय मंपूर्णम् ॥३॥ ६ ॥ उस काल उस समय में द्वारका नाम की नगरी थी, और सब अधिकार प्रथम अध्ययन जैमा ही जानना, इनना विशेष-वासुदेव राजा पिता, धारणी देवी माता, हि का सप देखा, सारण नामक कुमार हुवा पांच से कन्य के साथ एक दिन पानी ग्रहण कराया, पांच सो २ दात दी, शेष सब अधिकार गौतम 4 कुमार जैसा जानना. यावत् शत्रुनय पर्वत पर एक माहेने के संथारे से सिद्ध बुद्ध मुक्त हुवे ॥ इति सातवा/4 अध्ययन संपूर्णम् ॥ ३ ॥ ७॥ याद आठवा अध्धयन का उझेप. यों निश्चय, हे जम्बू ! उस काल उस समय द्वारका नाम की नगरी थी, इस का वर्णन जैसा प्रथम अध्ययन में कहा वैसा यहां भी जानना।। तृतीय वर्गका ६-८ अध्ययन + + 8+ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy