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अरिटुनेमी जाव समोसढे सिरिवण उजाणे अहा जाब विहरति ॥ १२ ॥ परिसाणि. गया ॥ १३ ॥ ततेणं तस्स अणियसेण कुमारस्म जहा गोयमे तहा णवरं सामाइइयमाइयाई चउदरस पुन्वाइं अहिज्जदातस्स वीसवासाइं परियाई सेसं तहेव सेतुजेपव्वाए मासियाए संलहणाए जाव सिद्ध ॥ १४ ॥ एवं खलु जंबू ! समणणं ज.व संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगरस अंतगडदसाणं तच्चस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ॥ १५ ॥ एवं जहा अणियसेणं, एवं सेसावि अणंतसंण, अजियसेण, अणि
अर्थ
8 अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
समय में अरिहंत अष्टि नेमीनाथ यावत् श्रीवन उद्यान में समवसरे, यथा उचित अवग्रह ग्रहण कर विचरने लगे ॥ १२ ॥ परिषदा आई ॥ १३ ॥ तब वह अनिकभेन कमार भी जिस प्रकार गौतम कुमार आया या उस ही प्रकार दर्शनार्थ आया, धर्म श्राण किया, दीक्षा धारण की, इतना विशेष इनोंने चौदह पूर्व का ज्ञान ग्रहण किया, बीस वर्ष संयमाला, और शेष आधिकार तैने ही यावत् शत्रुनय पति पर संथारा करके सिद्ध बुद्ध मुक्त हुवे मर्च दुःख का अन्न किया ॥ १४ ॥ यों निश्चय है. हे जम्बू ! श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी मुक्ति पधारे उोंने तीसरे वर्ग के प्रथा अध्ययन का इस प्रकार का अर्थ कहा ॥१५॥ इनि प्रथम अध्ययन संपूर्ण ॥३॥१॥ जिस प्रकार अनिकसेन कुमार का अधिकार कहा, इस हीच प्रकार शेष अनंतसेन,भजितसेन, अहितारिपु, देवसेन और शत्रुसेन इन पांचों का अधिकार कहना, सब के
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजा ज्वालाप्रसादजी
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