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________________ 4848 जहादढप्पदणे, जाव गिरिकंदर माणेव चंगवस्पायवे सुहं सुहणं परिवद्रुते ॥ ८ ॥ .. तेणं तरस अणियसणकमारे सातिरंगा अवासजात्तं जाणित्ता अम्मापियरो कलाया• . रियाओ जाव भोग समत्ये जातेयाधि होत्था ॥ ९ ॥ ततेणं से अणियसेणकुमारे उमुक्कबालभावंजाणिता अम्मापिपरी सरीसयाणं जाव बत्तीसाए इब्भवरकणगाणं एगदिवसेणं पाणीगिण्हावेति ॥ १. ॥ ततणंसे गागंगाहावइ अणियसेणकुमारस्स इमे एयारूवं पिइदाणंदलयति-वत्तिसंहिरण्णकोडीओ जहा महाबलस्स जाव उप्पियपासाथ फुटमाणे विहरति ॥१॥ तेणं कालेणं तेणं समयएणं अरहा मुख मुख में वृद्धि पाता है त्यों कुमर भी सुख सुख से वृद्धि पाता ॥ ८ ॥ तब वा अनिकसेन कुमार कुछ काधिक आठ वर्षका हुवा भोग भोगवने समर्थ बना ॥ ९ ॥ तब अनिकसेन कुमार के माता पिता अनिकसेन कुमार को योवन वय प्राप्त हुवा जान अनिकसेन कुमार के जैसी वयवाली रूपवाली ईभपति शेठ (गजांत लक्ष्मी धारक)की आठकन्या एकही दिन पानीग्रहण कराया॥१॥ तब वह नाग गाथापति अनिकसेन कुमारको 4 इस प्रकार प्रतिदान देने लगा-वनीम क्रोड हिरण्य इत्यादि जैसे महाबल कुमार के दायचे का अधिकार भगवती सूत्र में चला है उसही प्रकार यहां भी बत्तीत प्रकार के एक सो आठणो बोल का दायचादिया, 1 यावत् प्रसादों में मृदंग के सिर फूटते हुवे पंचन्द्रिय के मुख भोगवते विचरते हैं ॥ ११॥ उस काल उसमें + अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र 4888 तृतीय-वर्गका प्रथम अध्ययन 4 48 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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