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________________ अर्थ 4 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ॥ द्वितीय वर्ग ॥ जति दोच्चरसवगस्स उक्खेवओ | तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवतिनयरिए, विहिपत्ता, धारिणीमाता, ॥ अक्खोभ, सागर, खलु, समुद्द, । हिसवंते, अचलनामेय ॥ धरणे पूरणेय | अभिचंदे चेत्र अट्ठमए ॥ ॥ जहा पढमवग्गे तहा सव्वे अझयणा, गुणरयणं तवो कम्मं, सोलरसवासाइ परियाओ, सेतुजे मासीयाए संलेहणाए सिद्धा ॥ अझयणा सम्मत्तं ॥ २ ॥ ८ ॥ इतिविग्गो + + यों निश्चय हे जंबू ! उस काल उस समय में द्वारका नामकी नगरी थी, अन्त्रक विष्णुजी पिता, धारणी माता, जिनके पुत्रों के नाम-१ अक्षोभ, २ सागर, ३ समुद्र विजय, ४ हिमवंत, ५ अचल, ६ धरण, ७ पूरण, और ८ अभिचंद यह अठोंही पुत्र इनका सर्व कथन जैसा प्रथम वर्ग में गौतम कुमार का कहा ? तैसाही कहदेना, इनोंने भी गुणरत्न संवत्सर तपकिया, सोलह वर्ष साधु की पर्याय का पालन किया, शत्रुजय पर्वत पर एक महीने की सलेपना करके सिद्धगति को प्राप्त हुवे || इति दूसरे वर्ग के आठ अध्याय समाप्त ॥ २ ॥ ८ ॥ इति दूसरा वर्ग समाप्तम् ॥ २ ॥ X Jain Education International For Personal & Private Use Only ॐ प्रकाशक - राजा वहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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