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________________ १ 8+ 3 अष्टमांग अंतगड दशांग मूत्र + मासियाए सलेहणाए बारस्स परिस्साइं परिथाओ जाव सिद्धे ॥ १९ ॥ एवं खलु ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमरस अंगस्स अंतगउदसाणं पढमस्स। वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमटे पप्णत्ते ॥ २० ॥ १ ॥ १ ॥ * एवं जहा गोतमो तहासेसा-अंधयविहिपिता, धारिणीमाता, समुद्दे, सागरे, गंभीरे, थितिमित्ते, अयले, कपिले, अक्खोभे, पसेणइ, विण्हए; एगामो, ॥ इति पढमो वग्गो दसज्झयणं सम्मत्तं ॥ पढमो वग्गो सम्मत्तं ॥ १ ॥ + + + तैसे ही भगवंत को पूछकर कडाइये (मंथारे में सहायक ) स्थविरों के साथ शत्रुजय पर्वतपर चढकर क महिने की सलेषनाकर बारह वर्ष पंयम पाल यावत् सिद्ध हवे ॥ १९ ॥ यों निश्चय हेजंबू! श्रमण भगवंतने अष्टमांग अंतकृत दशांग के प्रथम वर्ग के प्रथा अध्याय का यह अर्थ कहा ॥ २० ॥ इति प्रथमो ध्याय ॥१॥ १ यों जिम प्रकार गौतकुमार का अधिकार कहा उस ही प्रकार शेप नहीं कुमरों के नव ge अध्याय कहना, ना ही के अन्धक विष्णु जी पिता, धारणा राणी माता और समुद्रकुगर, २ सागर, ३३ गंभीर ४ स्थिति मित, ५ अचल ६ कपिल, ७ अक्षाभ ८ प्रशेन जीत, और १ विष्णु यह नाम. इन सबका *एकसाही गमा जानना, सब बारा वर्ष संयम पाल शत्रुजय पर्वपर एक मांसकी सलेषना से सिद्ध हुवे ॥ इति. प्रथम वर्ग के दश ही अध्याय समाप्त ॥ प्रथम वर्ग समाप्त ॥१॥ र प्र यम वर्गका १-१० अध्ययन 4.29 + . For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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