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________________ मुनि श्री अयोलक ऋषिजी 89 अरिटुनेमी अन्नयाकयाइ वारवती नगरी तो नंदणवणातो पडिनिक्खमइ २ ताबहिया जणवय विहारं विहरति ॥ १८ ॥ ततेणं से गोतमे अणगारे अन्नयकयाइ जेणेव अरह अरिटुनमी तेणेव उवागच्छइ २ त्ता, अरहा अरिद्वनेमी तिक्खूत्तो आयाहिणं पयाहिणं वदति तमंसति एवं वयासी-इच्छामिणं भंते ! तुभेही भन्भणुणायसमाणे मासियं भिक्खू पडिमं उवसं रज्जित्ताणं विहरित्तए, एवं जहा खंदए, तहा बारस्स भिक्खू पडियाआ फासेति ॥ गुगरयणंपि तबोकम्मं तहेव फासेति णिरवसेसं एवं जहा खंदओ तडा चेतेति, तहा आपुच्छति, तहा थेरेहि कडाहिएहिं सद्धिं सितुजे दुरुहति अरिष्ट नेमीनाथ अन्यदा किसी वक्त द्वारका नगरी के नन्दनवन उद्यान से निकलकर बाहिर जनपद देश में विचरने लगे ॥ १८ ॥ तर गौतम अनगार अन्यदा किसी वक्त जहां अन्ति अरिष्टनेमी नाथ थे तहाँ आये आकर अहन्त अरिष्टतमी नाथजी को तीन वक्त हाथ जोड प्रदक्षिणावत फिराकर वंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कारकर यों कहने लगे अहो भगवन् ! आपकी आज्ञा होतो, में चाहा कि एक महीने की भिक्षुकी प्रतिमा अंगीकार कर विचरूं ?, यो जिस प्रकार भगवती सूत्र में खंधजी के अधिकार में कहा है उस ही प्रकार बारेही भिक्षुकी प्रतिमा की स्पर्शना की और गुनरत्न संवत्सर तपकी भी तैसे ही स्पर्शना की सर्व कथन जैसे खंदकजी तेके तपका कहा है सादी निर्विशेष कहना कहा है प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव महायजी ज्वालाप्रसादजी. अर्थ For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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