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॥१४॥ चउविहादेवा आगता कण्हाविणिग्गते,॥१५॥ ततेणं तस्त गोतमस्स कुमारस्स जहामेहे तहा णिगत्ते, धम्म सोचा, णवरं देगापिया ! अम्मपियरो आपुच्छामि देवाणप्पियाणं अंतिए, एवं जहा मेहे जाव अप..सार, इरिया-मित्त जाव इणमेव मिाथे पावयणे पुरतोकाओ विहरति ॥ १६ ॥ ततणं से गोतमे अणगारे अन्नया बयाई अरहा अरिट्ठ नेमीस्स तहा रूवाणं.धेरागं अंतिए सामाइमारियाई, इकारस्स
अंगाइ अहिजइ २ त्ता, बहुचउत्थ जाव भावेमाणे विहरंति ॥ १७ ॥ ततेणं अरहा दात दायजे में दी ॥ १३ ॥ उस काल उस समय में अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ धर्म की आदि के करता
यावत् मोक्ष के अभिलाषी पूर्वानुपूर्व चलते यावत् द्वारका नगरी के बाहिर नन्दन वन उद्यान में तप । ह, संयम से आत्मा भावते हुवे विचरने लगे।॥ १४ ॥ चारों प्रकार के देवता, देवीओं और कृष्णवासुदेव आदि ल दर्शनार्थ आये ॥ १५ ॥ जब गौतम कुमार भी ज्ञाता सूत्र में कहे हुये येघकुगार के जैस आये धर्मकथा
सुनी, वैराग्य प्राप्त हुवा, माता पिता से चरचा की, दीक्षा औत्सव यावत् दीक्षा धारन कर अनगार
हवे. ईर्यासमिती यावत् निर्ग्रन्थ के प्रवचन को आगे करके विचरने लगे ॥ १६ ॥ तव गौतम अनगार [ अरिहंत अरिष्ट नेमीनाथ भगवान के शिष्य तथारूप स्थविर भगवंत के पास सामायिकादि इग्यारे अंग प8,38
पढकर बहुत उपवास बेले आदि तप करते अपनी आत्मा को भावते. विचरने लगे ॥ १७ ॥ तव अरिहंत ..
अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र
प्रथम-गेका प्रथम अध्ययन O
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