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________________ 38407 अष्टमांग-अंतगड दशांग सूत्र 4888 चंदणाए अम्भणुणाय समाणी अभियं भिक्ख पडिम उपसंपविताणं विहरति । पढमं अट्ठते एक भोयणस्त दत्ति,एक पागंगात जाव अ नार अभायणस्स एडि. गाहेति अटू पाणस्य एवं खलु एवं अनियंभिक्खु पडि उसई न देर हैं, दोहिय अट्ठसाहि भिक्खासतेहि।४॥अहा जावनवनवाभियं भिक्स्यू कहिन उपसा तिताविहर, पढमेनव के एककंभोयणदात्त,एकक पाणस्त जाव णवमे कनकंपत्ति मागणपडि० नव पाणस्स एवं खलु नवमियंभिक्खु पडिमं एकासीए राइदिएहि, चउहि पचुत्तरह, भिक्खासा एहिं, अहासुत्तं ॥५॥ दस दसमियं भिक्खू प.डमं उनसंपजित्ताणं विहरई, पढमे इसके आजिवचरम लगी जिससे का दो दाति पानी इसी के सब दिन किस करके विग्नेदात आहार की आजिका आर्य चंदना आर्जिकाजी की आज्ञा प्राप्त होते आठमी आउ२ दिन की भिक्षकी प्रतिमा अंगीकार कर विचरने लगी-जिस मे प्रथम आठ दिनतक एक दात आहार की एक दाति पानी की, दूसर आठ दिन तक दो दाति आहार की दो दाति पानी की यावत् आढो दिन तक आठ दाति आहार कि और आठ दाति पानी की ग्रहण की । इस के सब दिन ६४ लगे और मत्र दाति दोसो अठ्य सी हुई ॥ ४॥ फिर नववी नत्र २ दिन की भिक्षकी प्रतिमा अंगीकार करके विचरने लगी-प्रथम के नव दिन तक नव दाती आहार की नव दानी पानी की यावत् व बदिन तक नवदाति आहार की 90 है और ना दाती पानी की ग्रहण की ॥ यों निश्चय नवी भिक्षुक की प्रतिमा इक्यासी दिन में हुई 100 | जिस की दाती चारसो पचहतर हुइ ॥ ५ ॥ फिर दशमी दशदिन की भिक्षु की प्रतिमा अंगीकार करके ?" -नर्गका पंचम अध्ययन 48862 N 48498 * नव दिन तक नव दाताण की ॥ यो निश्चय नवमा दशदिन की भिक्षुकी प्रति For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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