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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
एक्ककं भोयणदत्ति पडिमं एकेक पाण, जाव दस दस भोयणदत्ती, पडिग्गहेति दसपाण ॥ एवं खलु एयं दसमियं भिक्खू पडिमं एके पडिमं एकणराइंदिय सएणं अट्ठछटेहिव भिक्खासएहिं अहासुत्तं जाव आराहेति २ त्ता ॥ ६ ॥ बहुहिं चउत्थ जाव मासहमास विविहं तधोकम्मेणं आगणं भावमाणे विहरति ॥७॥ तएणं सा सुकण्हा अजा तेहिं, उरालेणं जाव सिहा ॥ निक्खेवओ ॥ पंचमं
अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ८ ॥ ५ ॥ एवं मता कण्हावि, णवरं खुडुयं सवतो भदंपडिमं विचरनेलगी-जिसमे प्रथम के दशदिनतक में एकदाति आहारकी और एकदाति पानीकी, दुसरे दशदिनतक, दो दाति आहार की दो दाति पानी की यावत् दशवे दशदिनतक दश दाति आहारकी और दश दाति पानीग्रहण की ॥ यों निश्चय दशवी प्रतिमा में सब सो (१००) दिन लगे, और इसकी सबदाति पचास कम छमो [ ५५. ] हुइ ॥ यथा सूत्रोक्त विधी प्रमान आराधी ॥ ६ ॥ फिर बहुत से चउथभक्त छठ भक्त मासखमन आधामहीना आदि अनेक प्रकार के तपकर अपनी आत्मा को भावती हुई विचरने लगी ॥ ७ ॥ तब सुकृष्णा आर्जिका उन उदार तप कर दुर्बल हुई यावत् । सलेषना कर सिद्ध हुई ॥ ८ ॥ अष्टम वर्ग का पंचम अध्ययन संपूर्ण ॥ ८॥५॥ ऐसे ही महाकृष्णा राणी भी दीक्षा धारन कर विचरने लगी, जिम में इतना विशेष इमनें छोटी सर्वतो भद्र प्रतिमा की
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सझयजी ज्वालाप्रसादजी
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