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सूत्र
अर्थ
+3 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
एक्केकं पाणयस्स, दोचा सत्तए दो दो भोयणस्स दो दो पाणगस्स पडिग्गाहेति, तच्चासत्ताए तिणि भोयण पाण, चउत्थचर, पंचमेपंच, छटुंछ, सत्तमसन्ताए सत्त २ दत्ताओ भोयणस्स पडिग्गाहेति, सत्त पाणस्स || १ || एवं सत्तामियंचि भिक्खू पडिमं एक्कुणपणाएराई दिएहिं एगेणय छणउएणं भिक्खासणं ॥ अहासुतं जाव आराहितिन्ता ॥ २ ॥ जेणेव अज्ज चंदणा अज्जा तेणेव उवागया, अज्ज चंदणाय अज्जायं वंदेइ नमसेइ एवं वयासी - इच्छामिणं अजाओ ! तुम्भेहि अणुणाया समाणी, अट्ठट्ठमियं भिक्खु पडिमं उपसंपज्जित्ताणं विहरितए ? अहासुहं ॥ ३ ॥ तचेणं सा सुकन्हा अजा
दिन सदैव दो दाती आहाकी और दो दाती पानी की ग्रहण की, तीसरे सप्त में सात दिन तक सदैव तीन दाति आहार और तीन दाति पानी की ग्रहण की, इस प्राकारही चौथे सप्त में चार २ दाती, पांचवे { में पांच दाती छठे में छेछे दानी, और सांतवे सप्तमें सात दाती आहार की और मात दाति पानीकी ग्रहण की ॥ १ ॥ यों निश्चय पानी सात सहे की भिक्षुकी प्रतिमा में गुन पचाम अहो रात्रि लगी और सव दाति एक सी छिन् ई. जिसका यक प्रकार मे सुत्रोक्त विधी प्रमान यावत् आराधन किया ॥ २ ॥ जहां चंदन बाल का आर्जिका थी तहां आई, आर्य चंदन वाला आर्जिका को वंदना नमस्कार कह यों कहन लगी- चहाती हूं अहो आर्जिकाजी जो आपकी आज्ञाहा तो आठमी आठ २ दिन की भिक्षुकी प्रतिमा अंगीकार कर विचरू ? || चंदन वाला आर्जिकाने कहा जैसे सुख होवे वैसे करो || ३ || तब वह मुकृष्णा
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* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वाला मसादजी *
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