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________________ 883 अधमांग अंतगड दशांग मूत्र कम्म, जहिव खुडागं, गवरं चौतीसइमं जाव नेयत्रं, तहेब उसारेयवं ॥१॥ एकाए परिवाडिए वरिसं छमासाय, अट्ठारस्सय दिवसा, चउण्हं छबरिसा, दोमासा धारसय अहोरत्ता, और जहा कालीए तहा, जाच सिहा ५ ॥ चउत्थं अज्झयणं सम्मत्तं ॥४॥ एवं सुकण्हावि गवरं सत्तमं सत्तमियं भिक्खू पडिमं उवसं पजित्ताणं विहरति, तंजहा-पढमए सत्तए एकके भोयंणस्स दत्तिओ पडिग्गाहेति पारन कर इसने बड़े सिंहकी क्रीडा का तपकिया ॥१॥जिस प्रकार छोटे सीहकी क्रीडाके तपका कथन कहा उसही प्रकार घडसिंहकी क्रीडाके तपका भी अधिकार जानना जिसमें इतना विशेष लघुसिंहकीफ्रिडा है केतप में तो बीस भक्त ( ९ उपवास तक ) तप करके पीछे फिरते और इस में चौंतीस भक्त (१६ उपवासतप कर उसहा प्रकार पीछे फिर व २रोक्त रीति प्रामाणेही घाना चाहिये ॥२॥ इसकी एक पाटी में एक वर्ष छ महीने और अठारे दिन लगे, और चारों परीपाटी में छ वर्ष दो महीने बारे अहोई । रात्रि लगी॥ ४ ॥ शेष अधिकार काली रानी जैसा जानना यावत् सिद्ध हुई ॥ इति अष्टम वर्ग का चतुर्थ अध्ययन समासम् ॥ ८ ॥ ४॥ + ॥ ऐसे ही सुकृष्णा रानी का भी अधिकार मानना, जिस में इतना विशेष सातवी सातअहो रात्री की भिक्षुक की प्रतिमा अंगीकार कर विचरने लगी-तद्यथा-प्रथम सातदिन तक सदैव एक दाति आहार की और एक दाती पानी की ग्रहण की, दूसरे सप्त में सात अष्ठम-वर्गका ४-५. अध्ययन MAarunaurarunnura Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600258
Book TitleAgam 08 Ang 08 Antkrutdashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages150
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_antkrutdasha
File Size15 MB
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