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गोयम एवं क्यासी-कहणं भंते ! तुब्र्भ परिवसह ? ॥ १॥ तसेणं भगवं गोयम अइमंत्ति कुमार एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! ममधम्मायरिए धम्मावदेसए धम्मनेवारं भगवं महावीरे आदिकरे जाव संपाविउकामे इहेव पोलासपुरेणयरें
बहियासे सिरिवणे उजाणे अहा पहिरवे उग्गहं उगिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं __भावमाणे विहरंति, तत्यणं अम्हे परिक्सामी ॥ १२ ॥ तत्तेणं से अइमुत्तेकुमारे
भगवं गोयम एवं पयासी-शामिण भैते ! अहं तुम्भे सहिं समण भगवं
महावीर पायबंदणयत्ते ? अहासुहं देवाणुप्पिया ॥१३॥ तत्तेणे अइमंतकुमारे प्रतिसाय कर पहोंचाये ॥१०॥ तब या अतिमुक्त कुमार भवंत मौतमस्वामी से ऐसा बोला-गे। भगवान ! भाप किस स्थान रहते हैं? ॥११॥ सब भगवंत गौनमस्वामी अतिमुक्त कुमार सेन व बोले- देवानुपिय ! मेरे धर्माचार्य धमेपिदेशक धर्मपंथगवर्तक भगवंत पहावीर स्वामी है।
धर्मकीमादि के करता यावत् मोक्ष के आभिलापी इस पोलासपुर नगर के पाहिर श्रीवन पागये. 13साके कस्पने योग भनिग्रह ग्रहणकर संयम तपसे अपनी मास्माको भावते हुवे विचर रो में उनके पास का ॥ १२ ॥ तब भगवंत गौतमस्वामी से अतिमुक्त कुमार यो पोसा-महो भगवान ! में श्रमण
भनव मावीर स्वामी को पंदना करमे भाप के साथ भाई भगवंत गौतमने काले देवानुप्रिया ! वेरेको
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