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अनुपादक रालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
णिग्मथे इरियासमिया जाव बंभयारी, उच्चनीय जाव अडामो ॥ ८॥ तेत्तेणं अइ-. मुत्ते कुमारे भगवं गोयम एवं वयासी-एएणं भंते ! तुन्भे जेणेव अहं तुभं भिक्ख दावावेमि, तिकटु, भगवं गोयमं अंगुलियाते गिण्हइ २ ता जेणेव सएगिहे तेणेव उवागते ॥ ९ ॥ तत्तेणं से सिरिदेवी भगवं गोयमं एजमाणं पासइ २ त्ता हट्ट, असतो अब्भुठइ २ त्ता जेणेब भगवं गोयमे तेणेव उवागता, भगवं गोयमं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहीणं बंदइ नमसइ २ त्ता, विउलेणं असणं पाणं खाइमं
साइमं पडिलाभेइ २ त्ता पडिविसज्जइ ॥ १० ॥ तत्तेणं से अइमत्ते कुमारे भगवं साधु इर्या ममिति यावत् गुप्त ब्रह्मचर्य के पालकहू. और मोचरी ( भिक्षा ) के निमित ऊंच नीच कुल में फिररहा हूं ॥८॥ तब अतिमुक्त कुमार भगवंत गौतम स्वामी से इस प्रकार बोला-अहो अगवन् ! तुम हमारे घर चलो मैं तुमारे को भिक्षादिलाईंगा, ऐसा कहकर भगवंत गौतम स्वामीकी करांगुली अतिमुक्त कुमारने । ग्रहण की (पकडी ) ग्रहण कर जहां अपना घर है उधर लेचला ॥ ९ ॥ उस वक्त अतियुक्त कुमार की माता श्री देवी रानी भगवंत गौतम स्वामी को आते हुवे देखे, देख कर तत्काल आसन ग्रेड खडी हुई जहा भगवंत गौतम ये तहां आइ. भगवंत गौतम को तीन वक्त हाथ जोड प्रादक्षणावंत फिराकर बंदना तमस्कार किया, वंदना नमस्कार कर विस्तीर्ण अन्न पानी क्वान मुखवासादि प्रतिलामा [ वेहराया ) *!
अप्रकाशक-राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
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