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41 एकादशमांग-विपाक सूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 428+
मेवगामिए, कोडुंबिय पुरिसे सकारइ सम्माणेइ पडिविसजेइ ॥ ५२ ॥ तएणं से अभग्गसेण चोरनेणाइ बहहिं मित्त जाय परिबुडे हाए जाव पायपिछत्ते सव्वालंकार विभूसिए, सालाडवी च रमल्लीओ पडिणिक्षमइ जंगेत्र पुरिमताल गयरे जेणेव महः ब्बलरायालेणेव आगच्छ३२त्त करयल परिग्गाहयं महब्बलं रायंजएणं विजएणं बडावेह बडादेहत्ता महत्थं जाव पहई उववण्गेइ॥५३॥तएणं से महबल्लराया अभग्गसेणस्स चोरस्स त महत्थं जाव पडिच्छइ, अभग्गसेण चोरसे सकारेइ समाणेइ विसजेइ,
कुडागार सालबसे आश्सएहिं दलयइ ॥ ५४ ॥ तएणं से अभग्गण चोरसेणावह कौटुबिक पुरुष को दस ताम्बूलादि से मस्कार सन्मान कर पीछा विदा किया ॥५२॥ फिर अम-2 जग्गसेन चोर सेनापति बहुन मित्र शातीयों के पारेवर से परिवरा हुवा स्नान कर शुद्ध हो सर्व अलंकार
सामरण पानकर सालाची चोर पल्ली से निकला, निकलकर जहां पुरिमताल नगर जहां महार सही पाया, तहां आकर दोनों हाथ जाड जय हो बिजय हो इस प्रकार बधाकर महा मुख्य राज्य भेटना (निजराना ) अणि किया ॥ ५३ ॥ तब फिर वह महा बलराना अभग्गरेन चोर सेनापनि का वा महामस्य भेट ग्रहग किया. अभगोन चोर सेनापति को प्रकार सम्मान दिया और उस कुटाकार शाला में उस का उतारा कराया. रहने को स्थान दिया ॥ ५४ ॥ तब फिर वह अभग्गसेन चोर सेनापति।
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दिपाकका-सासरा अध्ययन-बमम्गसन चोर का
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