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सूत्र
अर्थ
++ एकादशमांग- विपाकसूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध
गारसालं करेइ, अणेग खंभसय पासादिष ४ ॥४९॥ तणं महम्बलेराया अण्णयाकयाइ पुश्मिताले जयरे उस्सुक्कं जाव दसरत्तं पमोयं उग्घोसावेइ २ चा कोडुंबिय पुरिसे सदावेइ २ ता एवं व्यासी- गच्छहणं तुम्भं देवाणुपिया ! सालाडवीए चोरपल्ली, तत्थणं तुभे अभग्गसेणं चोरसेणावइस्त करयल जाव वयह एवं खलु देवापिया ! पुरिमंताल जयरे महाब्बलस्स रष्णो उसुक्के जाब दसरते पमोद उग्घोलिए तं किण्णं देवाध्विया ! विपुलं असणं ४ पुप्फवत्थ गंधमलालंकारेय इहं हम्ब
शाला बनवाई, वह अनेक स्थम्भोंकर वैष्टित चित्तको प्रश्न कारी देखने योग्य अभीरूप प्रतिरूप बनी थी॥ ४१ ॥ { तंत्र महा बलराजा उस शाला के उत्सव के लिये अन्यदा किसी वक्त दश दिनका दान माफ किया यावत् दशदिनतक प्रमोद उत्सव सुरू किया उस उत्सवका निर्दोष कराया— पडह बजवाया और कुटुम्बिक पुरुष को बोलाकर यों कहने लगा- हे देवानुप्रिय ! तुप सालाटव चोर पल्ली में जावो नहीं तुम अभग्गतेन चोर सेनापति को हाथ जोड वधाकर ऐसा कहना - यों निश्चय हे देवानुप्रिय ! पुरिमताल नगर में महा बलराजाने प्रमोद महोत्सव मंडा है, दश दिन दान लेना भी बन्ध किया है, यावत् दश दिन तक प्रमोदोत्सव का निर्घोष पडह बजाया है, इस लिये आप कहो तो आपको विस्तीर्ण अशना दे चारों प्रकार का आहार पुष्प गंध माला अलंकारादि यहां लाकर अर्पण करूं और जो आप की इच्छ हो
आप
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4 दुःखविषांक का तीसरा अध्ययन-अममानेन चोर का
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