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________________ 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + एणवि आसवलेण वा हात्थिबलेणवा जोहबलेणवा; रहबलेणवा, चाउरंगिणं पिउर . उरेणं गिण्हत्तए, ताहे सामेणय भेदेणय उवप्पदाणेणय, वीसंभमाणे उपत्तेयावि होत्था, जेदंडेणयविषसे अभितग्गासी सगसमामितणाइ णियग सयण संबंधि परियणंच... विपुलं धणकणगरयण संतसारसावए जेणं भिंदइ अभग्गसेणस्सय चोरसेअभिक्खण २ महत्थाई महग्घाई महरिहाइं पाहुडाई पेसेइ अभग्गसेणंच चोरसे वीमंभमाणेइ॥४८॥ तएणं से महब्बलेराया अण्णयाकयाइ पुरिमताले णयरे एगंमहं महइ महालियं कुडा. चतुरंगनी सेना के बलकर ऊपरा ऊपर आता हुवा लष्करभी उसे ग्रहण करने समर्थ नहीं होसकता है,परन्तु वचनादि से सन्तोष के वरुप में कर परस्पर भेद पडाकर वश्य में कर, तथा धनादि. देकर वश्य में कर विश्वास प्राप्त कर, प्रतीत उत्पन्न कर, उस के आभ्यन्तर के शिष्यसमान मित्र गौत्री स्वयं के सजनादि दास दासी प्रमुख को बहुत धन सुवर्ण रत्नादि होती हुई सार वस्तु देकर तत्काल उस का भेद उपावकर और अभग्गसेन चोर सेनापति को बारम्बार भेट प्रमुख भेज कर महा अर्थवाला बहुत मूल्यवाला उत्तम पुरुष के योग्य इस प्रकार भेटना(निजराना)ना कर अभग्गसेन चोर सेनापतिको विश्वास उत्पन्न कर पकडोतो भलाइ पकह सकोगे ॥ ४८ ॥ तब फिर महा बलराजा उस वचन को ध्यान में रख अन्यदा किसी वक्त रिमताल. नगर में एक बड़ी जंगी बहुत ही लम्बी विस्तीर्ण.चौडी कुंट के आकारवाली-तथा कूडपास रूप .प्रकाशवराजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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