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मनुवादक-बालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी
___ * तृतीय-अध्ययणम् * तबस्स उक्खेवो-एवं खलु जंबू ! तेणंकालेणं तेणंसमएणं पुरिमताल णामे णयरे होत्था रिद्धस्थिमिय ॥ १ ॥ तस्सणं पुरिमतालस्स अयस्स्स उत्तरपुरथिमे दिसीमाए एस्थणं अमोहदंसी उजाणे, तत्थणं अमोहदंसीस्स अक्खस्स जक्खायणे होत्था ॥२॥ तस्थणं पुरिमताले गयरे महव्वले णामं राया होत्था ॥ ३ ॥ तत्थणं पुरिमतालस्स गयरस्स उत्तरपुरित्थिम दिसीभाए देसप्पते अडवीसंसया, एत्थणं मालाडवी णाम तीसरा अध्याय का उत्क्षेप-यों निश्चय हे जम्बू! उम काल उस समय में पुरिमताल नाम का नमर थापा ऋद्धि समद सहित था ॥ १ ॥ उस पूरिमताल नगर के ईशान कौन में अमोघदर्श उद्यान था, उस अमोपदर्श उपान में अमोघदर्श नामक यक्ष का यक्षायतन [देवालय ] था ॥ २ ॥ तहां पुरिमताल नगर का महाबल नाम का राजा था ॥ ३ ॥ उम पुस्मिताल नगर के उत्तर पूर्व दिशा के बीच-नशान कौन में देशादि-देशमंडल के अन्त में अटवी में यहां 'सालादधी' नाम की चारपल्ली चोरों के रहने का स्थान था, वा विषम गिरी पर्वत का कुटर (मध्य) उस की कंदरा-गुफा के प्रान्त-पार सहां पली [ग्राम ] पसी ई थी, इस के वंस जालका कोद चारों तरफ फिरता हुना उस पल्ली को घेरा हुवा था, छेदित किया।
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालामसादजी.
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