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सूत्र
अर्थ
48+ एकादशमांग विपाक सूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध +
चोरपली होत्था, विसम गिरिकंदर कोलंबसणिविट्ठा वंसीकलंकपागारपरिक्खिता, छिण्णसेल विसमप्पत्राय फरिहोत्रगुढा, अभितर पाणीयासदुल्लभ जलपेरंता अ खंडी विदितजण दिण्ण निग्गमप्यवेसा सुचहुयस्स त्रिकूधियस्स जणस्स दुप्पत्रेसायावि होस्था || ४ || तत्थणं सालाडवीए चोरपलीए विजय णामं चोरसेणात्रइ परिवसइ, अहम्मिए जाव लोहियपाणी बहुणयरणिग्गयंजसे सूरदड्डप्पहारे, साहस्सिए, सद्दवेही, { हुवा पर्वत उस के मध्य विषय प्रायात खड्डा वही उस की खाइ थी, उस पल्लीको प्रगूढ-चैष्टित थी, वह पल्ली. अन्दर तो सुलभ सुखदाई परन्तु बाहिर से बडी दुर्लभ थी, अन्य को उस में प्रवेश करने का पंथ ढूंढते हुवे भी न मिले ऐसी थी, उस पल्ली में भगने के छिपने के स्थान बहुत थे, भगजाने के गुप्त द्वार भी बहुत थे, उन रास्तों से पंछानते मनुष्य को ही निकलने प्रवेश करने देते थे. देते थे, अत्यन्त कोपायमान हुवा मनुष्य भी अंदर प्रवेश नहीं कर सके इस चोर पड़ी थी ॥ ४ ॥ उन सालाटवी चोर पल्ली में विजय नाम का चोरों का सेनापति था, वह बडा अधर्मी यावत् जीवों का वध करने से जिसके हाथ रक्त से भरे रहते थे, उसे था, वह सब लोगों के आगे अधर्मकी ही बातों करता था तथा लोकों भी उसके आगे करते थे, वह अधर्म को ही देखता था, अधर्म का हो अधर्म का ही
अन्य को आने जाने नहीं प्रकार की वह सालाटवी
व्यापारी था,
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[ राजा ] रहता
अधर्म ही इष्टकारी
अधर्मकी ही बातों आचारी थी, अध
48 दुःखविषांक का तीसरा अध्ययन- अभग्गसेन चोर का
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