________________
n
-
-
अणंतर उवाहिता इहेव जंबुद्दीवेदीवे मारहेवासे चंपा गयरीए महिसताए पधाया-- * हिंति, सेणं. तत्थ अण्णयाकयाइ गोहिल्लएहि जीवियाओविवशोबसमाणे तत्व पाए
जयसए सेटुिंकुलंसि पुत्तत्ताए पञ्चायाहिं, तिसेणं तत्थ उमुक्कबालभावे तहारूवाणं ... धेर:णं अंतिए केवलंबोहिय अगगारे, सोहम्मेकप्पे जहा पढमो जाव अंतंकरोहिति ॥ E-णिक्लेवोवियं भझयणस्स ॥ दुहविवागस्स विइयं अज्झयणं सम्मन्तं ॥१॥ वहां से निकलकर मुगापुर की परे संमार परिभ्रमण करेगा यावत् पृथम्यादि में उसप होगा, सांसे
तर रहिल निकलकर, इसही जम्द्वीप के भरत क्षेत्र की एम्या नगरी में मसापने सब होगा, वह अवदा गौष्टिले (मित्र) पुरुष जीवितब्य रहिन करेंगे, तह से परकर उसकी पम्मा नगरी में कुल में पुत्रपने उत्पम होगा, तहां बाल्यावस्था से मुक्त हो पौवनावस्था प्राप्त हो नया कर स्थविर के पास सम्यक्त्व की प्रती कर साधु होगा, फिर चारित्र पालकर सौधर्मा दवलोक में देवनापने उत्पन्न होगा। वहां से प्रथम अध्ययन में कहे माफिक महा विदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध बुद्ध मुक्त हो सर्वदास का क्षय करेगा ।। इति दुःख विपाक का दूसरा अमित कुमार का भययन संपूर्ण ॥२॥ ..
mmmmmmmmmunicia
48-एकादशमांग-विपाक सूत्र का प्रथम श्रुत्स्कन्द
mamminiummmmmmm दुःखविषाक का दूसरा अध्ययन- उज्झत कुमार का
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org