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तएणं से पियसेणे पुमए इंदपुर जयरे बहवे राइसर जाव पभियओ दाहुहिय विजा पउगेहिय मंत चुपणहिय उडायणहिय णिवणेहिय पण्हवणेहिप वसीकरणेहियमि
ओगेहिय अभियोगिता उसलाइ माणुस्सए आग मागाइं भुजमाणे विहरिसर ॥६४॥ तएणं से पियसेण युसए एयकम्मे ४ सु बहु पात्रकम्मं समाजणित्ता इकवीसं वास सयं परमाउ पालइत्ता कालमासे कालंकिच्चा इमीसे रयप्पभाए पुढवीए णेरइएत्ताए उक्वजिहिति, तओ सिरिसिवसु, संसारा तहेवजाव पदमो जार पदविसेण तओ
अनुनादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी
की चतुरता कर उत्कृष्ट शरीर का धारक बनेगा ॥ ६२ ॥ तब फिर प्रियमेन नपुंसक इन्द्र पुर नगर में वहत से राजा ईश्वर यावत् प्रभात प्रमुख को बहुत प्रकार से विद्या के प्रयोग कर,मंत्र के प्रयोग कर, चूर्ण के प्रयोग कर, हृदय को उद्राउनहार अर्थत् चित्त का शून्यपना करेगा, यद्यपि उस को बहुन लोगों द्रव्य देंगेतो भी वह किसी को पूछने से कहेगा नहीं, यों बहुत अदत्तादान ग्रहण कर वहन कृपणता धारन कर उक्त विद्यादि प्रयोगमे बहुत लोगों को अपने वश में कर उनको किर-चाकरकी माफक पवर्तावेगा,उदार मनुष्य संबंधी भोग भोगना हुवा विचरेगः ॥ ३ ॥ तब फिर वह प्रियमेन नपुंसक इस प्रकार कर्म करतूत कर बहुत पाप कर्म की उपार्जना कर, एक सो इक्कीस (१२१) वर्ष का उत्कृष्ट आयुष्य पालन कर, काल के अब. मर में कालं पूर्ण कर इस ही रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होगा, नहां से निकल गौ तथा नकुल होगा..!
• पाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजा
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