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________________ + एकादशमांग विपाकसूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 438 दोचंपि गिण्हावेइ २त्ता आणुपुव्वेणं सा रक्खमाणी सं गोवेमाणी संबड्डेइ ॥ ३९ ॥ तओणं तस्स दारगम अम्नापियरो ठितिवडियंत्र कम्मं चंदसरया दंसणियंच जागरियं च माहिया इद्रि सक्कार समदयणं करड॥ ४०॥ तआणं तस्त दारगस्स अम्मापियरो एक्कारसमे दिवसे णिवत्ते.संपत्ते बारसाहे अयमेयारूचे गोगं गुणणिप्पणं णामधेनं करेइ, जम्हाणं अम्हे इमं दारए जायमेत्तए चेव एगंते उकरुडियाए उज्झिए तम्हाणं होउणं अम्ह दारए उझिय णामणं॥४१॥तएणं से उझिय दारए पंचधाई परिग्गहिए । तं जहा-खीरधाइ, मंजणधाइ, मंडणधाइ, कीलामणधाइ, अंकधाइ जहा दङ्पइप्णे, डलाकर पीछा दूसरी वक्त उठा लिया, फिर अनुक्रम से उस का रक्षण करती हुई, दुग्धादि से पोषती हुई. वस्त्रादि से गोपती हुई तथा शीतोष्णादि से रक्षती हुई रहने लगी ॥ ३४ ॥ तब फिर उस बालक के माता पिता प्रथम दिन जन्मोत्सव, तीसरे दिन चन्द्र मूर्य के दर्शन छठ दिन जागरण इत्यादि बहुत ऋद्धि सत्कार सन्मान से किया ॥ ४०॥ तव फिर उस बालक के माता पिता इग्यारवा दिन अशुची कर्म से निवृत हो बारवे दिन इस प्रकार का गुग निष्पन्न नामकी स्थापना की. जियक्त हमारा यह वालक जन्मा उस वक्त इसे एकान्त उकरडी पर डाला था, इसलिये हमारे इस बालक का नाम उज्झिा कुपार होवो ॥४१॥ तब फिर वह उज्झित बालक १ दूध पिलानेवाली, २ मंजन करनेवाली, ६ मंडन-सिन्गार करानेवाली +8 दुःखरिपाक का दूसरा अध्ययन-उन्शिा www.jainelibrary.org Jain Education International For Personal & Private Use Only
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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