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________________ मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + लइ २त्ता अदुइट्टोबगए कालमासे कालंकिच्चा दोच्चाए पुढीए उकोसं तिसागरोवर्म गैरइयत्ताए उवणे ॥ ३५ ॥ तएणं सो विजयमितरस सत्यवाहस्स सुभद्दा भारिया जाइणिदुयाविहोत्या, जायादारमा विणिहायमावजात ॥ ३६ ॥ तएणं से गोतासे कुंडग्गाहे दोच्चाआ पुढवीओ अणंतरं उहित्ता इहेव वाणियग्गामे गयरे विजय मित्तरस __ सत्थवाहस्स सुभद्दा भारिया कुच्छिसि पुत्तताए उबवणे ॥ ३७ ।। तएणं सा सुभद्दा सत्यवाहीणी अण्णया कयाइ णवण्हं मातागं बहपडिपुण्णाणं दारयं पयाया ॥ ३८॥ तएणं सा सुभद्दा सत्यवाहीणी तं दारगं जायमेवयं चा एगते उकुरुडियाए उम्झाइरत्तो समाचारी कर बहुन पाप कर्म की उपार्ज ना कर पांच सौ वर्ष का परम उत्कृष्ट आयुष्य पालन कर आत रौद्र ध्यान ध्याता हुवा काल के अवसर काल पूर्ण करके दूपरी नरक पृथ्वी में उत्कृष तीन सागरोपम के आयुष्यपने नेरीयःपने नरक में उत्पन्न हुया ।। ३५ ।। तब वह विजय मित्र सार्थवाही की मुद्रा भार्या मरे, हवे पालकों का जन्म देनी थी ॥३६॥ तव वह ग.त्रानीया चाडीया दूरी नरक से अंतर रहित निकलकर इस ही वाणिज्य ग्राम नगर में विजय मित्र सार्थवाही की भद्रा भार्या के कुक्षी में पुत्राने उत्पन्न ॥३७॥ तब फिर भद्रा भार्या सार्थवाहीनी एकदा प्रस्ताव नव महीने प्रति पूर्ण हुने बाद बालक का जन्म दिया । ३८ ॥ तब बह भद्रा सार्थवाहोनी उस जन्मते हवे बालक को एकान्त उकरी पर डलवाया * पकाकराजाबहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादनी अनुवादक-बालब्रह्म Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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