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एकादशमांग-विपाकपुत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध
राया गीतासं दारयं अण्णयाकयाइ सयमेव कूडग्गाहेत्ताए ठवेइ ॥ ३२ ॥ तएणं से गोत्तासे दारए कृडग्ग हेजाएयाविहोत्था, अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे ॥३३॥ तएणं से गोतासे दारए कूडग्गाहे कल्लाकलिं अद्धरत्त कालसमयंसि एगे अबीए सण्णद्धव कवय जाव गहिया उपहरणे साओ गिहाओ णिज्जाइ २ त्ता जेणेव गोमंडवे तेणेव उवागच्छइ २त्ता बहुणं णयरगोरूवाणं सणाहाय जाब वियंगतेइ २त्ता जेणेव सएगिहे तेणेव उवागच्छइ २ ॥ तएणं ते गोतासे कूडग्गाहे तसिं बहुहिं गोमंसेहिं सोल्लेहिं सुरंच ६ आसाएमाणे ४ विहरइ ॥ ३४ ॥ तएणं से गोतासे कूडग्गाहे-एयकम्मे
एयपहाणे एयवीजे एयसमायारे बहुपावं कम्मं समजिणित्ता, पंचवाससयाई परमाउपाराजाने गौवासीये चालक को अन्यदा किसी वक्त अपना चाडीया-दूतपने स्थापन किया ॥ ३२ ॥ सय वह गौत्रासीया सदैव आधीरात्रि में अकेला किसी अन्य को साथ में लिये विना कवचादि पहनकर शस्त्र धारन कर अपने घर से निकलकर जहां गौशाला है तहां आता, आकर बहुत नगर के गौरू चौतुष
सनाथ अनाथके अंगोपांगका छेदन करता, छेदन करके जहां अपना घर है तहां पीछा आता, उस गौमांस ७ के बहुत मूले करके सूरादि के साथ अस्वादता खाता खिलाता विचरता था ॥३४॥ तय फिर वह गौवामिया चाहीया ऐसे तीव्र पाप कर्म का समाचरन करके, पाप कर्म में प्रधान श्रेष्ट होकर इस प्रकार खराव
दुःख विपाय का-दृमरा अध्ययन-उाझा कुमार का
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