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२१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
सदेण विधुढे विस्सरे भारस्सिए तएणं एयस्स दारगस्स आरसिय सदै सोचा णिसम्म हथिणाउरे बहवेणयर गोरूवाजावभीया४ उव्विगासवओसमंता विप्पलाइत्ता, तह्माणं होउणं अहमेदारएगोतासे णामणं॥२८॥ तएणं से गोतासे दारए उम्मुक्कबाल भावे जाव जाएयाविहोत्था ॥ २९ ॥ तएणं से भीमकूडग्गाहे अण्णयाकयाइं काल धम्मुणासंजुत्ते ॥ ३० ॥ तएणं से गोतासे दारए बहुणं मित्तणाइं णियग सयण संबंधि परिजणेणं सद्धिं संपरिबुडे रोयमाणे कंदमाणे बिलयमाणे भीमस्स कुडग्गाहस्स
गीहारणं करेइ २ त्ता, बहुइलोइयमयकिच्चाइ करइ २, ॥ ३१ ॥. तएणं से सुणंदे हुवा. तब यह बालक महारशब्द कर-रूदन किया चीस पाढी तथ इस के भयंकर शब्द को श्रवण कर अवा धार कर हस्तिनापुर नगर के बहुत पशु गोबेलादि त्रास पाये यावत् दिशोदिशा में भगे, इमलिये हमारे इस बालक का नाम 'गौत्रासीया" होयो ॥२८॥ तब फिर वह गौत्रासिया बाल्यावस्था से मुक्त हुवा यावत् । बीवन अवस्था को प्राप्त हवा ॥ २९ ॥ तब यह भीमकूडग्राही अन्यदा प्रस्तावे काल पास हवा. मृत्यु पार १॥३०॥ तब फिर गौत्रासीया बहस पिध सजातिये गौत्रीये अपने स्वजन मित्र. दास दासी, प्रमुख के साथ परिवरा हुवा रूदन करता आक्रन्दन करता भीमकूडग्राही के शरीर का निहारन कर्म किया जा फिर बहुत लोकाचार मृत्युक की पीछे करने के काम किये ॥ ३१ ॥ तव फिर उस नगर के सुनन्द ।
प्रकाशक-राजाबहादरलाला सुखदेवसहावजी ज्वालाप्रसादजी*
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