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सूत्र
अर्थ
एकादश मांग- विपाकसूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्
झियाहिंसि ? ॥ २० ॥ तणं सा उप्पला भारिया भीमकुडगाहं एवं वयासीएवं खलु देवाणुपिया ! ममं तिन्हं मासाणं बहुपडि पुण्णाणं दोहलं पाउन्मए ४ जाउ बहुणं गोरुवाणं ऊहेहिय जाब लावणएहिय सुरंच ६ आसाए माणीओ ४ दोहलं विर्णिति, तएणं अहं देवाणुप्पिया ! तंसि दोहलसि अविणिजमाणंसि जाव झियामि २१ ॥ ए से भीमकुङग्गा उप्पलं भारियं एवं बयासी माणं तु देवाणुपिया ! उहज्झियासि, अहणं तं तहा करिस्सामि जहाणं तवदहलस्स संपती भावस्तइ, ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं जाव समासाइ ॥ २२ ॥ एणं से भीमकूड
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तव उत्पला भार्या भीमकूडग्राही से यों कहने लगी-यों निश्चय हे देवानुप्रिय ! मेरे को गर्भावस्था के तीन महीने प्रतिपूर्ण हुवे दोहला उत्पन्न हुवा. जो माता गौशाला के बहुत गौ बैल भैंस पाडे का [ उडास्तन यावत् मशाले से संस्कार कर मदिरा आदि के साथ अस्साद थी खाती खिलाती हुई विचरती हुई दोहला पूर्ण करती है, उसे धन्य है. तब फिर मैंने हे देवानुप्रिय ! मेरा यह दोहला पूर्ण होता नहीं देखा इसलिये मैं आर्त ध्यान ध्याती हुई विचर रही हूं ॥ २१ ॥ तत्र भीमकूडग्राही उत्पला यों कहने लगा हे देवानुप्रिय ! तुम चिन्ता मत करो जिस प्रकार तुमारा दोइत्रा पूरा होगा बैसा ही मैं करूंगा, यों कह कर इष्टकारी मियकारी वचन कर उस को संतोषी || २२ || तब फिर वह भीमकुडग्राही ।
भार्या से
43 दुःखविपाकका दूसरा अध्ययन- उज्झिन कुपार का
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