________________
-
अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋापनी 22
ग्गाहे अद्धरतकालसमयंसि एगे अबीए सणबद्ध जाव पहरणे, साओ गिहाओ णिगच्छइ २ सा हथिणारं मझमझेगं जणेव गोमंडो तणेय उमाइ २ ता चहुणं गयर गोरुवाणं जाव वसभाणय-अप्पंगइयां ऊहे छिदइ, अपगइयाणं कंबलंछिंदइ.अप्पेगइयाणं अण्णमण्णाणं अंगोवंगाई बिइंगेइ २ ता जेणेव सएगिह तेणेव उवागच्छइ २ त्ता उप्पल!ए कुडग्गाहणीए उवणेइ ॥ २३ ॥ तएणं सा उप्पला कूडग्गाहणी संपुण्ण पोहला, समाणिय दोहला, विच्छिा दोहला, संपण दोहला, आधीरात्रि काल समय में अकेला ही किसी को साथ नहीं लेना हुवा सद्ध बना [वरतर ] पहनकर हथियार ग्रहण करके अपने घर से निकला, निकलकर हस्तिनापुर नगर के मध्य २ में होकर जहां शाला थी तहां आया, आकर बहुत से ग्राम के चौपद वृषभ गाय प्रमाव के अलग२ कितनेक के उहाडे का छंदन किया, कितनेकका कम्बलका छदन किया. यों अलग२ पशुओं का अश्या अंगोपांग का छेदन लेकर जहां अपना घर था तहां आया, आकर उसरा कूःग्रहण' को वह दिया, उत्पा कूडया बहुन प्रकार के मौ आदि के मांस के सूलाकर तल भूज मदिरादि के माथ अस्पद भी खाती खिलाती दाइला पूर्ण किया ॥ २३ ॥ तब वह उस ला कूडग्राहणीका समस्त दांच्छितार्थ पूर्ण हुवा,वांछा की निवृत्ति
• प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org