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कूड़गाहस्त उप्पलागामं भारियाहोत्था, अहीण ॥१७॥ तएणं सा उप्पला कूडग्गा. हिणी अगयाकपःई अवगस ता जायायाविहोत्था ॥ १८ ॥ तएणं तीसे उपलाए कूडग्गाहिणीए तिहमः पाणं बहुमण्डपुण्णाणं अयमेया रूवे दोहले पाउन्भूए-धग्माउणं त ओ अम्मयाओ ४ जाच सुलद्धे जाओणं बहुणं णयरगोरुवाणं सगाहाणय जाय वसभाणय-जहेहिय. थणेहिय, वमणेहिय, छिप्पाहिय, कुकुहहिय. वहहिय, कण्हेहिय, अक्खिहिय, णासाहिय, जिगाहिय, ओटुहिय, कंबल हय, सालेहय, तलेतेहिय
भनि पहिय, परिसुक्कहिय लावणेहिय मुरंच महुंच मेंगरंच ज इंच सिधुच पसण्णंच मग पूर्ण मुरूषा थी ॥ १७ ॥ तत्र यह उत्तराला कूडग्राहणी एक वक्त गर्भवती हुइ ॥ १८ ॥ तब उन उत्पला कूपनगगी अवस्थाक तीनमही व्यतीत हान इसप्रकार दोहला उत्पन्न हुवा कि जोमाता-गौशाला में रहें हुो दुत में पशुओं मालकों के या विनामार को के गौ बेल, भेंस, पाड प्रमुख जिनों का गाय के प्रतल रहे उहाड का, वल के वृषण (अंडोका) पेटका, सन का. वमन का, स्कन्ध का, कूकड-वे स्कन्ध का, गलेका, आंख का, नाक का, जिव्हा का. हष्टका कवल-गके नीचे लटकती लोमका, सूले व
कई कर तेल में तल ओमार भंकर, लूस मिरची आदि मशले में संस्कार कर सका वा साम 15मय, ताडी, मदिरा, गुरुका वना-सिन्धु, पावडी का बना पासन्न निमकर जिन को अस्वाद थी हुइ खाती
* एकादशमांग-विशक सूत्र का प्रथम श्रस्कन्ध
4 दुःखविपाक कादूगग अध्ययन उज्झित कुमार का के
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