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सूत्र
अर्थ
एकादशांग विपाक सूत्र का प्रथम श्रुतान्य
वायगा
यरे उच्चणीयकुले जाव अडमाणे अहापज्जत समुदाणं गण्हई वाणिय
गामं यरं मज्झ मज्झेणं जाव पडिदंसेइ, समगं भगवं मवावीरं बंदइ नमसइ वंदिता नमसिता एवं बयासी एवं खलु अहं भंते ! सुम्भेहि अन्भणुण्णाए समाणे वाणियगामं जव तहेव नित्रेएइ, सेणं भंते ! पुरिसे पुव्यभवे के आसि जाय पञ्चणुब्भवमाणे बिहरई ? ॥ ११ ॥ एवं खलु गोयमा ! तेणंकालेणं तेंणंसमएणं इहेत्र जंबुद्दीवे २ मारवा से हरियणाउरे णामं जघरे होत्था, रिद्धत्थमिय ॥ १२ ॥ तत्थणं हत्थिा
मर्याद प्रमाणे समुदानी बहुत घरों से भिक्षा लेकर वाणिज्य ग्राम के मध्य मध्य में होकर निकलकर यावत् भगवंत के पास आये, आहार पानी बताया, देखाकर श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदनानमस्कार कर यों कहने लगे-ठे पुज्य ! में आपकी आज्ञा लेकर वाणिज्य ग्राम नगर में भिक्षार्थ गया था वहां वन्धबन्धा हुवा पुरुषको देखा इत्यादितच देखावा वृतान्त निवेदन किया, और पूछने लगे कि हे अहो भदंत ! वह पुरुष पूर्व भव में कौन था? यावत् जो नरक जैसा दुःख भागव रह है ? ॥ ११ ॥ भगवंत कहते हैं-यों निश्चय हे गौतम ! उस काल उस समय में इस ही जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में हस्तिमागपुर नाम का नगर ऋद्धि स्मृद्धिकर सम्पन्न था ॥ १२ ॥ नहीं हस्तिनागपुर नगर में सुनन्द नामे राजा राज्य करता था,
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दुःखविपाक का दूसरा अध्ययन-उज्झिन कुमार का
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