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________________ अर्थ अनुदकं चालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी + कणियस्थं, कंट्टे गुणरत मल्लदामं खुण्णगुडियायं खुण्णयं बैभपाणीपीयं, तिलं २ चैत्र छिजमाणं, काकणिमसाई खावियं तं णत्रीकक्करसएहिं हम्ममाणं अणेगणरणारीसं परिबुडे चंचरे २ खंड पडहरणं उग्घोसिज्जमानं इमं चणं एयारूत्रं उग्घासणं सुइ-जो खलु देवाणुनिया ! उज्झियदारगस्स केइराया रायपुत्तोत्रा अवरजइ, अप णो से साई कम्माई अवरजइ ॥ १० ॥ तएण से भगवं गोयमं तं पुरिसं पासिला, इसे अज्झथिए - अहोणं इमे पुरिसे जाव निरयपडित्रयं वेयणंबेएसि चिकटु, वस्त्र पहनाये हैं, गले में कणियर के फूल की माला डाली है, गेरू के रंग कर जिस का मात्र भरा है, जिस को अपने प्राण बहुत प्रिय हो रहे हैं, उन के शरीर का मांस तिल २ जितना छेदके काटके उसको ही खिलाते हैं, उस को कर्कश वचन सुनाते हैं, बांसों के प्रहार कर मारते हैं, अनेक स्त्री पुरुष के परिवार से परिवरा हुवा बजार २ में खडा करके फूटा हुवा ढोल बजाते हैं, डड बजाते हुवे इस प्रकार उद्घोषकरते हैं कि हे देवानुप्रिय ! इन उज्झिन कुमार पर राजा का राज पुत्रादि किसी का भी अपराध नहीं है, परंतु यह अपने किये हुने कर्मों करही दुःख पारठा है || १० || तब वे भगवंत गौतम स्वामी उस पुरुषको देखकर इस प्रकार विचार करने लगे--अडो इति वेदाश्चर्य ! यह पुरुष प्रत्यक्ष नरक जैसी वेदनाका { अनुभव कर रहा है, यो विचार कर वाणिज्य ग्राम नगर के ऊंच नीच कुल में यावत् भिक्षार्थं फिरते हुवे अपनी Jain Education International For Personal & Private Use Only * प्रकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेवमहायजी आलाप्रसादजी ● ४० (www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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