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मूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध एकादशमांग-पाक
तत्थणं बहवे हत्थीपासइ, सणवह वम्मिाडिए उपीलिय कयत्वे उदामियघंटे जाणामणिरयणविविगेबजे, उत्तरकंचुइजे पडिकप्पिए, झय पड:गवर पंचामल आरुढे. हत्यारोह गहिया उसनहरेणए, अपय तत्थ बरते यामे पासई सणबद्ध चम्मियगडिए, आविद्धगडे उनाग्यिवरे उनकचय उचलमा चडावर चामर घासक परिमंडिय कडीए, आरुढ अस्सारं हे गहिया उप्पहरणे ॥ तलि चणं पुरिमाणं
मझगयं एगंपुरिसं पासइ अयउडगबंधग उमाकागामासं हताधियगयं बझकर -जिन का पेट पन्धा हुआ था. बहुन घंटा यक्त. ओक प्रकार के पास जडित विविध प्रकार के आभरण युक्त, उत्तर कंचक-होदा-प्रभारी राफ, सीमायग्राले कलिन, पंगी, पताका धनाओं ऊंची करी हुई है, निम पर राज पुरुप यीपारों (खा)को धान कर यास्ट. और भी वहां बहुत घे डों की पाक्त दखी-चे घोडे भी पावर पार
हु नकर बन्धे , पाल जिन पर ख मा हवा लगान खंचने में जिनका मुख ऊंचा हुवा है.जि । का पृष्ट विभाग चामरकर आरोगा कर मणिका है जिस पर
सुभा चार हा हैं. और भी बहुन पुरुष (पाल)का लकार है, जिने धनुशवाण दियोक मरण उरूई *धारन किये हैं. उस के मध्य एक पुरुप दखा..इ उलटी मुम्कों से या हवा है उसके कान नाक छेदन
ये हैं, संद कर जिस का शरीर चिला है, वसमेत हानि पहनाद है, घोर के योग्य
दुःखविपाक का-दूनग अध्ययन-उज्ज्ञ कुपारका
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