SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र मर्थ 43 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुति श्री अमोलक ऋषिजी पुत्ते सुभद्दाए भारियाए असए, उज्झिए नामं दारए होत्था, अहीण जाव सुरुवा॥ ८ ॥ कालणं तेणंसमएणं समणे भगवं महावीरे जात्र समोसड्डे परिसाणिग्गया रायाचि निग्गया, जहा कुणिओ निग्गओ धम्म कहिओ परिसा राया पडिगया || ९ || तेणंका लेणं तेणं समणं समरस भगवओ महाबीरस्स जेडे अंतेवासी इंदभूइ जाव तेयलंसे, छटुं छडे जहा पणतीए पढमं जात्र जेणेव वापियगामे तेणेत्र उवागच्छइ २त्ता वाणियगामे उच्चनीयमज्झिमाईकुलाई अडमाणे अंग्रेत्र राज्यमग्गे तेणेव उवागन्छ २ चा विजय मित्रका पुत्र भद्रा का आस्पन उज्झित नाम का बालक था, वह सर्व अंग पूर्ण रूपर्वत था ॥ ८॥ उप काल उस समय में श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे, परिषदा आई जिस प्रकार कोणिक राजा आया, ई उस प्रकार, राजा भी आया, धर्मकथा कही परिषद पीछो गई, राजा भी पीछा गया ॥ ९ ॥ उम काल उन समय में श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के बडे शिष्य इन्द्रभूनी नावे अनगार यावत् तेजोलेश्यावंत छठ २ (बैले २ ) वारना करने भी सूत्र में कहे जय मयन पोरसी में स्वाध्याय की, दुसरी में ध्यान घरा, तीसरी पोरसी में भगवंत की आज्ञा लेकर भिक्षार्थ वाणिज्य ग्राम नगर में आये, वाणिज्य ग्राम नगर के ऊंच क्षेत्र नीच कृपणादि मध्यम वणिकादि के कुलों में फिरते हुवे जहां राज्य पंथ था तहां आये, वहां आश्चर्य कारक बता देखा - बहुत हाथी देखे, के हाथीयों सनहा पाखर युक्त मजबूत डोरीकर Jain Education International For Personal & Private Use Only * मादक - राज बहादुर लाला सुखदेवसहायजी आलाप्रसादजी ३८ www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy