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चरण-लावण्ण-बिलास कलिया, उसियधया सहस्सलभा, विदिण्ण-छत्त. चामर बाल-- वेयणिकाया, कणीस्हप्पयायाहोत्था, बहुणं गणियासहस्साणं आहेबच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भहित्तं महतरगत्तं आणाइसर सेणावच्चं करेमाणी पालेमाणी विहरइ ॥५॥ तत्थणं वाणियग्गामे विजयमिते णामं सत्थवाहे परिवसइ, अड्डे॥ ६ ॥ तस्सणं विजय मित्तस्स सुभदाणामं भारिया होत्या,अहीणा जावे सुरूवा ॥ ७॥ तस्सणं विजयमित्तस्स
48+ एकादशमांग-विपाकसूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध48862
+ दुःखत्रिपाकका दूसरा मध्ययन-उज्झिा
सहिक कहने वाली विविध प्रकार के विलास, ललित वचन बोलना इनकर युक्त थी, लोकीक व्यवहार साधने में बडी कुशल थी, उस के शरीर के अवयव स्तन जंघन मुख हाथ पांव, लावण्यता बिलास कलिन पनाकर आतिसुन्दरथे, जिस के घरपर ऊंची दमा फरारा रहीथी,हजार दिनार(मुवर्ण मोहर) देनेवालेको अंगीकार की करती थी, उसे छत्र चमर बाल श्रीजना-मोरछंग, करण का सहित रथ पालखी राजाने बक्षीस में दियेथे, वह बहुत हजार गणिका की मालकनी थी. सब का पालन करती अधिपतिपना करती अग्रेसरपना करती पोषकपना जेष्टिकापना आज्ञा मनाती ऐश्वर्यफ्ना करती पालती विचरती थी ॥५॥ तहां वाणिज्य ग्राम नगर में विजय मित्र नामे सार्थवाही रहता था, वह ऋदिवंत था यावत् अपरामवित था ॥६॥ उस विजय मित्र सार्थवाही की सुमित्रा नाम की भार्या थी, वह प्रतिपूर्ण अङ्गोपाङ्ग वाली यावत् सुरुमा थी ॥ ७ ॥ उस
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