________________
+8 अनुवादकबालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी
मिसेणाम रायाहोत्था ॥ तत्थणं मित्तस्सरण्णो सिरीनामदेवी होत्था विष्णओ. ॥ ४ ॥ तत्थणं वाणियगामः गयरे कामज्झयाणामं गणियाहोत्था, अहीण जाव सुरूवा, वावत्तरीकला पंडिया, चउसट्टि गाणिया गुणोववेया, एकूणतीसे विसेसे रममाणी, एकतीसरगुणप्पहाणा,बतीस पुरिसोवयार कुसला,णवंगसुत्त पडिबोहिया, अट्ठारस्सदेसी भासाविसारया, सिंगारागार चारुवेसाइ, गीयरइ गंधव्वण कुसला, संगयगय भाणिय विहिय विलासललिय स्लावणिउणजुत्तो वयारकुसला, सुंदस्-थण-जहण-यण-करराज्य करता था, उस मित्र सजाकी श्री देवीरानी थी, उसका वर्णन धारनी रानी जैसा जानना ॥४॥. उस वाणिज्य ग्राम नगर में कामना नाम की गणिका (वैश्या) रहती थी वह पांचाइन्द्रिय अपाङ्गकर पूर्ण सुरूपवती थी. व पुरुष की ७२ कला तथा स्त्रीकी ६४ कलकी जान थीं, ६४ वैश्या के गुणयुक्त थी,२९ रति (विषय ) के गुन में रमन करती थी, ३१. रति के गुन प्रधान भोगवती थीं, ३२ पुरुष के उपचार जिस से पुरुष वश्य होवे उस में पण्डित थी, ९ अंग (२ कान, २ आंख, २ नाक, ' जिव्हा, १ त्वचा 5 और १ मन इन को ) मूते हुवे को जाग्रत कर सकती थी, १० देश की भाषा बोलने में विशारद
[पडित ] थी, श्रृंगार का आगार [घर समान चारू-मनोहर वेश की धारन करने वाली थी, गीत. में रती (काम) सेवन में गन्धर्ग कला नृत्य कला में बडी कुशल थी, संगित गतिकी जानने वाली, विधि ।
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org