________________
सूत्र
अर्थ
एकादशमांग- विपाक सूत्र का प्रथम श्रुत्स्कन्ध
* द्वितीय-अध्ययनम् *
जइणं भंते ! समणेणं जाब संपत्तेणं दुहविवागाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, दोच्च सेणं भंते ! अज्झयणस्स दुहविद्यागाणं समणेणं जाव संपतेणं केअ पण्णत्ते ? ॥१॥ तएणं से सुहम्मे अणगारे जंबू अगगारं एवं वयासी एवं खलु जंबू ! ते काणं तेणंसमएणं वाणीयगामे णामं णयर होत्था, रिद्धत्थिमिय ॥ २ ॥ तस्सणं वाणियगामस्स नगरस्स उत्तर पुरत्थिम दिसीभाए दुईप्पलासे णामं उज्जाणेहोत्था, तत्थणं दुइपलास मुहमस्स जक्खस्स जक्खायतने होत्था वण्णओं ॥ ३॥ तत्थेणं वाणियगामे
यदि अहो भगवान ! श्रमण भगवंत महावीर स्वामी यावत् मुक्ति पवारे उनाने प्रथम अध्ययन का उक्त अर्थ कहा, तो अहो भगवान श्रमण भगवंत यावत् मुक्ति पधारे उनाने दुःख विपाक के दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? ||१|| तब सुधर्मा स्वामी जंबूस्वामीं से ऐसा बोले-यों निश्चय हे जंबू ! उसकाल उस { समय में वाणिज्य ग्राम नाम का नगर था, वह ऋद्धि स्मृद्धिकर संयुक्त था || २ ||उस वाणिज्यग्राम नगर के ( ईशान कौन में घुति पालास नाम का उध्यान (बाग) था, उस द्युनि पालास उध्यान में सुधर्म यक्ष का यक्षायतन ( मंदिर ) था, पूर्ण भद्र जैसा वर्णन् योग्य. ॥ ३ ॥ उस वाणिज्यग्राम नगर में मित्र नामका राजा
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
दुःखविपाक का दूसरा अध्ययन- उज्झित कुमारका
३५.
www.jainelibrary.org