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________________ namaAM अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलंक ऋषिजी + गाहा-मगर-सुसुमारादीणं अडतेरस जाइ कलकोडीजोणि पमुह सया हस्साइं, तत्थणं एगमेगंसि जोणिविहाणंसि अणेगसयसहस्स खुत्तो उद्दाइ २ त्ता तत्थेवभुजो २ पच्चायाइस्सइ, सेणं तआ उहित्ता एवं चउप्पएसु, उरपरिसप्पेसु, भुयपरिसप्पे पु, खहयरेसु, चउरिदिएम, तइंदिए सु, वेइंदिएसु, वणप्फइकडयरुक्खेसु कडयदुडिएसु; वाऊ-तऊ-आऊ-पुढवि अणेगसहस्स खत्तो ॥ ६८ ॥ सेणं तओ अणंतरं उव्वहित्ता सुपइट्ठपुर गोणत्ताए पच्चायाहिति, सेण तत्य उमुक्कबालभावे जोव्वणगमणुपत्ते अण्णयाकयाइं पढमापाउसंमि गंगाए महाणईए खलीणमट्टियं खणमाणे तडीए पल्लिए ग्रह,मगर,मुमुमार आदिक जलचर जीवों की साढीधारेलाख कुलक्रीडी में उत्पन्न होगा,तहां एकेक योनी के भेद । उस में अनेक सोहजार ( लाखों ) वार जन्म धारन कर कर मरंगा, तहां फिर २ उत्पन्न होवेग से निकल कर चौपदों में, उरपर सर्प में, भुजपर में, ऐसे ही पक्षीयों में,ऐसे ही चौरिन्द्रिय तेन्द्रिय बेइन्द्रिय, वनस्पति में, कडवे कंटाले वृक्षों में,वायु में तेऊ-अग्नि में पृथवी में,यों छेही काय की मर्व योनीयों में अनेक लाखबार । मर२कर तहाँ २ ही पीछा उत्पन्न होगा ।।१८||फिर तहां से अन्तर रहिन निकलकर सुप्रतिष्ट नगरमें बेल (सांड) होवेगा, तब वाल्या वस्थासे मुक्त हो यौवन अवस्था को प्राप्त होवेगा, तब प्रथम की वर्षाद ऋत में गंगानदा के तटकी मृति का शृंग से खोदता हुवा वह तट टूटकर ऊपर पडेगा, जिस से मृत्युपाकर, २ प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी घालाममादजी* For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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