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अर्थ
सूत्र
एका शमांग विपाकसूत्र का प्रथम स्कन्ध
सेणं तत्थसी भविस्सइ, अहम्मिए जाव साहस्सीए बहुपात्रं जाव समज्जिणइ २ ता कालमासे कालंकिच्चा इमीसे स्यणप्पभाए उक्कोसं सागरोवमं जाव उबवजेहिंति, सेणं तओ अनंतरं वहिसा सिरीसिवसु उववज्जहिंति, तत्थणं कालंकिच्चा दोच्चार पुढवीए उक्कोसिया तिणि सागरोवमाई, सेणं तओ अनंतरं उवहित्ता पक्खीसु उववज्जइ, तत्थणं कालंकिच्वा तच्चाए पुढवीए सत्तसागरोवम, तओ मीहेसु तयाणं तरंचणं चरथी पुढवीए, उरगो, पंचमी, इत्थीओ, छट्टीए, मणुओ. अहेसत्तमाए, तओ अनंतरं उत्ति से जाई इमाई जलयर पंचेंदिय तिरिक्खजोणियाणं, मच्छ कच्छभ
होगा, वहां बहुत पापका उपार्जन करेगा, वहांने कालपूर्ण करके इस रत्नप्रभा पहिली नरकमें उत्कृष्ट एक सागपत्रकी स्थिति वाला नेरइया होगा, तहां से अन्तर रहित निकलकर नकुलपने उत्पन्न होगा, कहांसे काळपूर्ण कर दूसरी नरक में उत्कृष्ट तीन सागरोपमकी स्थिति पावेगा, तहां से अन्तर रहित निकलकर पक्षी में उत्पन्न होगा, वहां से काल पूर्णकर कै तीसरी नरक में सात सागरोपम की स्थिति पावेगा, तहां से निकलकर सिंह होवेगाहां से निकल चौथी नरक में दश सांगस्थिति पावेगा, फिर सर्प होगा, फिर पांचवी नरक में सतरा साररोषमस्थिति गोवगा फिर स्त्री होगा, फिर छठी नरक में बाइस सागवेस्थिति पावेगा हर मनुष्य होगा, फेर सातवी नरक में तीस सागरोपमस्थिति पावेगा, वहां से अन्तर रहित निकल कर जलवर तिर्येच पंचेन्द्रिय होगा, यों मच्छ, काछवा,
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4- दुःखविपाक का पहिला अध्ययन-मृगापुत्रका
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