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अर्थ
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी ने श्री अमोलक ऋषिजी
तुम्भं पया थिरा भविस्सइ॥६५॥तएणं सा मियादेवी विजयस्स खत्तियरस तहत्ति एयमद्वं विणएणं पडिसुणेइ २त्ता,तंदारगं रहस्तिय समिघरं भत्तपाणेणं पडिजागरमाणी विहरइ ॥६६॥एवं खल गोयमा! मियापुत्तदारर पुरापोराणानं जाव पचणुब्भवमाणे विहरइ।।६७॥ मियापुतणं भंत ! इओ कालमाम कालंकिच्चा कहिं गमिहिंति कहिं उक्वजिहिंति ? गायना ! मियापुत्ते दारए बत्तीसं वासाई परमाऊ पालइ २त्ता कालमासे कालंकिच्चा
इहव जंबुद्दीवे २ भारहेवासे वेयगिरिपाइमूले सीहकुलंसि सीहत्ताए पचायाहिंति, स्थिर नही होयेगा, इसलिये तुप इस पुत्रको न्हाखोमत, परंतु इस को तुम छिपाकर भूनीघर में गुप्त पने रक्ख कर आहार पानी से पोषती हुइ बिचरो कि जिस से आगे तुमारे संतान स्थिरी भूत होवे ॥ १५ ॥ तब वह मृगावती रानी विजय क्षत्री राजा का उक्त वचन तहत प्रमाण कर सविनय श्रवणकर अवधारकर
उस बालक को भूमीघरमें प्रच्छन्नपने रखकर आहार पानी से पोपती हा विचरने लगी ॥३६॥ हे गौतम ए. इस प्रकार मृगापुत्र कुमार पूर्वभव में बहत काले के संचित किये पाप के दश्चिर्ग खराब फल को भोगवता:
हुवा विचर रहा है॥६॥ अहो भगवान! यह मृगापुत्र वालक यहांते कालेक अवसरकालपूर्ण करके कहां जावेगा। कहां उत्पन्न होगा हे गौतम गापुत्र बालक बत्तीस वर्षका उत्कृष्ट आयुष्एकामालनकर कालके अवसर काल पूर्ण कर इस बैताइ पर्वत के पास सिंह के कुलमें सिंहपने उत्पन्न होगा,वह सिंह अधर्मी पापिष्ट यावत् सहासिक क्रूर
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाप्रलदजासी
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