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सूत्र
अर्थ
- एकादशांग विपाकसूत्रका प्रथम श्रुतस्कन्ध
समाणे कालंग, तत्थेव सुपइट्ठपुरे जयरे सेट्ठिकुलांस पुत्तत्ताए पच्चायाइस्सइ, सेणं तत्थ उमुक्कवालमावे जाव जोन्त्रणगमणुपत्ते तहा रूवाणं थेराणं अंतिए धम्मं सोच्चाणिसम्म मुंडे भवित्ता, आगाराओ अणगारियं पव्त्रइस्सई ॥ सेणं तत्थ अणगारे भविस्सई, इरिया समिए जात्र भयारी, सेणं तत्थ बहुई वासई सामण्ण दरियागं पाउणित्ता आलोइय पडिक्कं समाहिपत्ते कालंमासे कालंकिच्चा सोहम्मकप्पे देवताए उववज्जि - हिंति, सेणं तओ अनंतरं चयं चइत्ता महाविदेवासे सेजाई कुलाई भवंति अड्डड्ड्
[ तहां ही सुप्रतिष्ट नगर में शेठ के पुत्रपने उत्पन्न होगा, तहां बाल्य अवस्था से मुक्त होकर तथा रूप स्थविर आचार्य के पास धर्म श्रवण करेगा अधारेगा यावत् गृहस्थावास का त्यागकर मुण्डित हो- अणगार { साधु बनेगा || वह साधु वहां इर्यासमिति आदि पांच समिति समिता तीन गुप्ति गुप्ता यावत् ब्रह्मवार्यदि साधु के गुन युक्त बहुत वर्ष साधु पना पालकर आलोचना प्रतिक्रमना निन्दना ग्रहना कर शुद्ध हो, समाधी { परिणाम से काल के अवसर काल पूर्णकर सौधर्ना देवलोक में देवता होवेगा, तहां से अन्तर रहित चत्रकर महा विदेह क्षेत्र में उत्तम कुल में जन्म धारन कर स्मृद्धिवंत जैसा उनबाई व रायप्रसेनी सूत्र में द्रढ प्रतिज्ञा कुमरका कथन कहा है तैमा होकर बहुतर कलाका अभ्यमकर कर यावत् दीक्षा लेकर करणी कर कर्म क्षय
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दुःखविपाक का - पहिला अध्ययन-मृगापुत्रका
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