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12 एक्काइरटूकडे विपुलं अत्थसंपयाणं दलसइ,दोचंपि तच्चंपि उग्घोसेह रत्ता एयमाणत्तियं
पञ्चप्पिणह ॥ तएणं ते कोडंबिय पुरिसा जाब पच्चपिणंति॥५४॥तएणं से विजयवद्ध. माणखेडंसि इमएयारूबाई उग्घोसणं सोच्चा णिसम्म बहवे विजया६ सत्थकोस हत्थगया
सएहिं २ गिहाओ पडिनिक्खमइ २त्ता विजयक्हमाण खडं मझमज्झणं जेणेव एक्काइ रट्टकू* डस्स गिहे तेणेव उवागच्छइ २त्ता एक्काई रटुकडस्स सरीरयं रामसइ २त्ता तेसिं रोगाणं : नियाणं पुच्छइ २त्ता,एक्काई रट्ठकूडस्स बहुहिं अभंगाहय,उवटणांहिय,सणहं पाणेहिय,वमा
हिय विरेयणेहिय,साचगहिय,अबद्दहणेहिय,अणुवासणाहिय,वत्थि कम्मेहिय, नरुहेहिय, बहुत धन सम्पदा देवेगा, इस प्रकार दो तीन वक्त उद्गोपना करो, कर के यह मेरी आज्ञापीछी मेरे सुपरत करो. तब वह कुटुम्बक पुरुष कहे मुजर उद्घोषना करके आज्ञा पीछे सुपरत करी ॥५४ ॥ तर उस विजय वृद्धमान खेडा के रहने वाले उक्त प्रकार की उद्घोषना श्रषण कर अपधार कर, बहुत वैद्य वैद्य के. पुत्रों यावत् औषधी वाले के पुत्रों वेदिक शस्त्रों का कोश-वक्स हाथ में ग्रहण कर अपने २ घर से निकले निकलकर विजय बृद्धमान खडे के मध्य मध्य में होकर जहां एक्काइ राठोड का घर था तहां आये, ता आकर एक्काइ राठोड के शरीर को नाडी आदि अंग परिक्षालिये ग्रहण किया, उस रोग का निदान-उत्पन्न होने का कारन पूछा,एक्काइ राठोड के शरीर को बहुत प्रकार के तैलका मर्दन कराया, उगटना(पीठी)कराया,
कालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी -
* प्रकाशक-राभाबहादर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादनी .
अर्थ
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