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________________ बहुसु-कज्जेसुय कारणेसुय मंतेसुय गुज्झेसुय निच्छेय ववहारेसुय सुणमाणे मणइ नसणेइ असुणमाणे भणइ सुणेइ एवं पस्समाणे भासमाणे गिण्हमाणे जाणणे ॥ ५१ ॥ तणं से एक्काइरटूकूडे एयकम्मे एयपहाणे एयविज्जे एयसमायारेसुय बहुपावकमं कलिकलुतं समज्जिणमाणे विहरइ ॥ ५२ ॥ तएणं तस्स एक्काइयरस रटुकूडस्स अण्णा कषाई सरीरगंसि जमगसमगमेव, सोलसरोगायका पाउन्भूया, तंजहा- सासे, खासे, जरे, दाहे. कुच्छसले, भगंदरे, अरिसे, अजीरे, दिट्ठीसले मुद्धसूले, अरोए, अर्थ हुवा कहता कि मैं ने सुना है, ऐनेही देखे हुने को नहीं देखा कहता है ओर बिना देखे हुवे को देखा कहता, बोला हुवा को नहीं बोला कहता और बिना बोले को बोला कहता है, लिया हुवा नहीं लिया और नलिये को लिया कहता था. या हरेक कार्य में अपना मतलब साधते झूठ बोलता हुवा अन्य का धन ग्रहण करता था ॥ ५० ॥ तब वह एकाइ राष्ट्रकड इस कुकर्मकर इस मार्ग में प्रवृतिकर उक्त प्रकार पाप समाचरता हुवा बहुत खोटेकर्म क्लेशकारी कर्म उपार्जन करता हुवा विचरता था ॥ ५२ ॥ तब एक्काइ राठोड के शरीर में अन्यदा किसी वक्त एकही साथ मोलेरोग प्रगट हुने, उन के नाम- १ श्वाश, २ खांसी, ३ ज्वर, ४ दाहा, ५ कुक्षीशूल, ३ भगंदर, ७ हरश ( मस्ना ) ८ आजीर्ण, ९ दृष्टीशूल, १० मस्तकशूल, ११ अरुचि. १२ आंखखीवेदना, १३ कांनकी वेदना, १४ खुजली, १५ जलोदर, और सत्र २३ अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी Jain Education International For Personal & Private Use Only * प्रकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ** www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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