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सयाई बहुहिं करोहिय भारहिय विडीहिय उक्कोडाहिय पराभवहिय दिजेहिय भन्जेहिय कुंतेहिय लंछपोसेहिय, आलोवणेहिय पंथकोटेहिय उवीलेमाणे २ विहिंसेमाणे २ तज्जेमाणे २ तालेमाणे २ निधणेकरेमाणे २ विहरइ॥५०॥तएणं से एक्काईरहकूडे विजयवद्धमाण खडस्स बहुणं राईसर जाव सत्थवाहाणं अण्णेसिंच बहुणं गामेल्लगपुरिसाणं
4.११ एकादशमांग-विपाकसूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 18+
प्रचूर करलेता, कृष्णादि पाम मे बहन बनलेता, उस में भी प्रतिदिन कर वृद्धिकरता. लांचलताई लोगोंका पराभव करता, ऋण (करजा दिया हुधा पीछा अधिकलेता, एकका दंड बहुत के सिर डालता (नथा, कहता था की तेरे पाल मेरा इस भवका व पर भवका ऋन है यह चुका)लांचलेकर चोरों का पोषन कर चोरी करता रास्ता लूट करता, दूसरके पास करना, लोगोंचको धर्म से आचार से भृष्ट करता, तर्जना करता, चपटे मारता, स्वार्थ पूर्ण करने लाल पाल (खुशामद ) करता, इत्यादि प्रकार से लोगों को निर्धन करता हुवा दुःखी करता हुआ विचरता था।॥५०॥और भी बह एकाइ राठोड विजय बृद्धमान खडे के बहुत से राजा युवराजा शठ सार्थवाही प्रमलो को और भी बहुत से ग्राम के पुरुषों को बहुत से कार्यों में घमीटता, से कडो कार्य जिन के पास करता,आलोच-शला करने में, गुहा-निर्लन कार्य करने में, हरके वस्तु का निर्णय करने में, निश्चय के काम में, व्यवहार के काम में, सना हुवा भी कहता मैं ने नहीं सुना है और विनामुना
4280दुखविपाकका-पाहला अध्ययन-मृगापुत्रका 42
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