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________________ दाहिण पुरस्थिमे दिसिभाए विजयवद्धमाणे णाम खेडेहोत्था, रिद्वत्थामय वण्णओ ॥ ४६॥ तस्सणं विजयवद्धमाणे खेडस्स पंचगामसयाई अभोएयाबि होत्था ॥४७॥ तस्सणं विजयबद्धमाणे खेडे एक्काइ णाम रटुकडेहोत्था, अहम्मिए जाव दुप्पडियागंदे, ॥ १८ ॥ सेणं एकाइणामं रट्टकूडे विजयवद्धमाण खेडस्स पंचण्हंगामसयाणं आहेबच्चं पोरवच्चं सामित्तं भहितं महतरगत्तं आणाईसर सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ ॥ ४९ ॥ तएणं से एक्काइ रटकूडे विजयवद्धमाण खेडस्स पंचगाम उस सतद्वारा नगरी से बहुत दूर नहीं तैसे बहुत नजीक नहीं दक्षिण पूर्व के बीच अग्निकौन में विजय बृद्धमान नामक खेडा (धुलका कोट वाला) ग्राम था, वह भी ऋद्धि स्मृद्धिकर शोभित था॥४॥उस विजय बृद्धमान खेडा के पीछे पांचमो ग्राम लगते थे, उसका भोग विनय बृद्धमान खेडा के अधिपति कोमिलता, था ॥ ४७ ।। उस विजय वृद्धमान खेडे में एक्काइ राठोड-देशाधिकारी ठाकुर था, वह एक्काइ अधर्मी यावत् कुकर्म करके ही आनन्दप्राप्त करता था॥४८॥ वह एक्काइ राठोड विजय वृद्धमान खंड में लगते हुने पांचसो ग्रामका अधिपति(जिष्टिक पना अग्रेसर(स्वामी)पना,(मेनापति पना भरन पोपन करता पालता हुवा विचरताचा 13॥४९॥ तब फिर वह एक्काइ राठोड विजय बृद्धमान खेड़ा के पांचमी ग्राम का कर बढाता विशेष करलेता,, अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक परषिजी १ प्रकाशक-राजाबहादुरलाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* 50 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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