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________________ गोएवा कयरंसि गामसिवा णयरंसिवा, किंवादच्चा किंवाभोच्चा किंवा समायरित्ता केसिंवा पुरापोराणाणं दुच्चिण्णाणं दुप्पडिकताणं असुभणं पावाणं कंम्माणं फलनिति विसेस पच्चणुब्भवमाणे विहरइ ? ॥ ४४ ॥ गोयमाइ, समणे भगवं महावीरे गोयमं एवं वय सी-एवं खलु गोयमा ! तेणंकालेणं तेंणसमएणं इहेब जंबद्दीवे दीवे भारहेवासे सयदुवारे णामं णयरे होत्था, रिद्धथमिए समिद्धा वण्णओ तत्थणं सयदुवारे णयरे धणवती णाम रायाहोत्था वण्णओ, ॥४५॥ तस्सणं लयदुबारस्स गयरस्स अदूरसामेते अभक्ष खाया, क्या पाप समाचरन किये, कौन से जन्मान्तर में पुरातम् बहुत कालके दुश्चीर्ण प्रणाति पातादि दुष्टपने समाचारे, उमे प्रतिक मे नहीं प्रायःश्चित ले शुद्ध हुवा नहीं, वे अशुभ करनी के हेतू भूत पापकर्म सावद्य अनुष्ठान कर्म उस के अशुभ विपाक फल रूपवात्त जिस का प्रत्यक्ष अनुभव करतो भोगवता हुवा यह यहां विचर रहा है ? ॥ ४४ ॥ गौतम दिसे आपण भगवंत महावीर स्वामी गौतम सामी से यों कहने लगे-यों- निश्चय हे गौतम ! उस काल उस समय में इसही जबुद्वीप में सोद्वार वाली शतद्वारा नामकी नगरी कही, वह नगरी ऋषिकर प्रधान तथा भूमिका आवासकर सुसोभिन स्वचक्र परचक्र 17 के भयरहित धन धान्यकर पूर्णथी. तहां शतद्वारा नगरीमें धनपतिनामका राजा कोपिक राजा जैसाथा॥४॥ एकादशमांग विपाक सत्र का प्रथम श्रुत्स्कन्धA8 498 दुःखविपाक का पहिला, अध्ययन-मृगापुत्रका 482 4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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