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________________ acacic - अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी णयरं मझं मज्झणं निगच्छइ २त्ता जेगेव समणे भगवं महावीर तेणेव उवागच्छइरत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहाण पयाहाण करेइ २ त्ता वंदइ णमंसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-एव खलु भंत! अह तुब्भेहिं अभणुण्णाए समाणे मियग्गामं णयरं मझं मझेणं अणुपविसामि. जैव मियादेविएगिहे तेणेव उगए. तएणं मामियादेवी मम एजमाण पासइ २ त्ता हटुं, तंच व सव्यं जाव पूयंच सोणियंच आहारेइ, तएणं ममे इमे अज्झत्यिए पत्थीए चिंतीए मणोगएसंकप्प समुप्पजित्ता-अहोणं इमे दारए पुरा जाव विहरइ, सेणं भंते ! पुरिसे पुन्वभवे के आसी ? किं णामेएवा किं जहां श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी थे तहां आये, आकर श्रमण भगवन्त महावीर शमी को तीन वक्त हाथ जोड प्रदक्षिणावर्त फिराकर बंदना नमस्कार की, वंदना नमस्कार कर ऐमा बोले-अहो भगवन् ! मैं आपकी आज्ञासे मृगाग्राम नगर के मध्य में हो जहां मृगावती देवीका घर तहां गया,तव मृगावती देवी पेरेको आता हुवा देखकर हृषतुष्ट हुई इत्यादि सब कथन क हदिया यावत् पीप रक्तपण व आहार परिणमा उमे भी वह है खागया, तब मुझे इसप्रकार अध्यवसाय प्राथीचिंता मनोगत संकल्प उत्पन्न हुवा कि-अहो खेदाश्चर्य यह बालक जन्मान्वर के संचित पाप के फल भोगमता विचर रहा है, अहो भगवान ! वह पुरुष पूर्व भव में कौन में क्या नाम था, क्या गौत्र था, किन ग्राम में अथवा नगर में रहता था, क्या खराब वस्तु अन्यकोदी, क्या PanamanAmAnnnnnnnnnivannivAAAAAAnnaamang • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वाला प्रसादजी, अर्थ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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