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________________ * एकादशमांग-विपाकसूत्र का प्रथम श्रुतस्कन्ध 438 वयासी-तुभेणं भंते ! इहचेच चिंटूह, जहणं अहं तुभं मियापुत्तं दारयं उवेदंस-, मितिकटु, जेणेव भत्तपाणघरए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता वत्थपरियट करेइ २ त्ता कट्रसगडियं गिण्हइ २ ता विपुलस्स असण पाण खाइम साइमस्स भरेइ २ त्ताः तं कट्टसगडियं अणुकट्ठमाणी २ जेणेव भगवं गोयमे सेणेव उवागच्छइ२ त्ता भगवं गोयम एवं वयासी-एहिणं तुब्भे भंते ! ममं अणुगच्छह. जहाणं अहं तुभं मियापुत्तं दारयः उवदंसेमि ॥ ३८ ॥ तएणं से भगवं गोयमे मियंदविं पिटुओ समणुमच्छइ. : ॥ ३९ ॥ तएणं सा मियादेवी तं कटु सगडियं अणुकट्ठमाणीरजेणेव भूमिघरे तेणेक उवगच्छइ २त्ता चउप्पडेणं वत्थेणं मुहबंधमाणी, भगवं गोयम एवं वयासी-तुब्भेविणं अहो भगवान! तुम यहांही खडेरहो जिससे में तुमारे को मृगापुत्र कुमारदेखावू.यों कहकर जहां भोजन गृहया । आई आकर वस्त्र बदले, वस्त्र बदलकर लकडे की छोटीसी गाडी ग्रहण की, उस में विस्तीर्णः अन्न खादिम स्वादिम भरा, भरकर उस काष्ट गाडी के मुख को डोरी वन्धी थी उसे खेचती हुई २ जहां भगवंत गौतम स्वामी थे तहां आइ, गौतमः स्वामी से यों कहने लगी-अहो भगवान ! तुम मेरे पीछे पधारों निस ॐ से मैं तुमारे को मृगापुत्र देखावू ॥ ३० ॥ तक भगवंत गौतम स्वामी मृगावतीदेवी के पीछे २ चले ॥३॥ तब वह मृगावती देवी उस काष्ट गाडी को खेचती २ जहां भूमीगृह ( भोयाग) था तहां आई, आकर ११.दुखविपाकका-पहिला अध्ययन-मृगा पुत्र .. Jan Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600256
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages216
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_vipakshrut
File Size22 MB
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